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चलो कहीं तो चीन को मात दे पाएं हम



वैसे तो चीन से हम जनसंख्या के साथ-साथ करीब-करीब हर फील्ड में हमेशा पीछे रहते आए हैं... हालांकि ये बात अलग है कि जनसंख्या विस्फोट के मामले में हम निकट भविष्य में चीन को पछाड़ देंगे... लेकिन इसके परिणाम क्या होंगे.. ये आप और हम अच्छी तरह जानते हैं... लेकिन पिछले कुछ साल में या यूं कहें कि पिछले तीन-चार साल में बैडमिंटन में जिस तरह से हमने चीनी चुनौती को धवस्त किया है वो काबिलेगौर है... 2014 के चीन ओपन में ऐसा पहली बार हुआ जब पुरुष और महिला दोनों के सिंगल्स मुकाबलों में भारतीय खिलाड़ियों की जीत हुई... मेन्स सिंगल्स में श्रीकांत किदांबी और महिला सिंगल्स में सायना नेहवाल चैंपियन बने... सायना और श्रीकांत का जीतना इस मायने में भी बेहद अहम है क्योंकि 2003 से लेकर 2013 तक चीन दोनों ही मुकाबलों में कभी नहीं हारा था... 2001 में पुलेला गोपीचंद ने ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीती थी... उसके बाद अब तक हुए 14 में से 10 बार ये खिताब चीन के खिलाड़ियों के पास गया है... हालांकि इस साल महिला सिंगल्स में पहली बार अपनी सायना नेहवाल फाइनल में पहुंची लेकिन वो इसे जीत नहीं पायीं... लेकिन इसके बावजूद भी सायना की उपलब्धि इसलिए भी बड़ी थी क्योंकि क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल में जिस तरह उन्होंने चीनी खिलाड़ियों को हराया उसने चीन में खलबली मचा दी... हालांकि इसकी शुरुआत 2009 में इंडोनेशिया ओपन से ही हो चुकी थी.. जब सायना ने लगातार दो साल तक चीनी खिलाड़ियों सहित दुनिया की दूसरी बड़ी खिलाड़ियों को हराकर खिताब पर कब्ज़ा किया... कुछ दिनों पहले तक सायना दुनिया की नंबर वन खिलाड़ी की कुर्सी पर काबिज़ थी.. जो किसी भी भारतीय शटलर के लिए बड़े ही गर्व की बात है.. फिलहाल सायना की रैंकिंग नंबर दो की है... सायना और श्रीकांत के अलावा इस वक्त भारतीय शटलर्स ने पूरी दुनिया पर अपनी अलग छाप छोड़ रखी है... पी कश्यप के गेम के दीवाने पूरी दुनिया में हो चुके है... उनकी तेज़ी और ताकत दोनों मिलकर उनके खेल को अलग मुकाम पर पहुंचा देते हैं... 2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ में ब्रॉन्ज और ग्लासगो 2014 में कश्यप ने गोल्ड जीता... 2012 लंदन ओलंपिक में कश्यप भारत के पहले खिलाड़ी बने जो मेन्स सिंगल्स के क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे... क्वार्टर फाइनल में वो दुनिया के पूर्व नंबर एक खिलाड़ी मलेशिया के ली चोंग वेई से हारे... वहीं श्रीकांत किदांबी ने भी दुनिया को ये बताया कि बैडमिंटन में अब भारतीय खिलाड़ियों को कमतर नहीं आंका जा सकता... 2013 से लेकर 2015 तक श्रीकांत ने चार बड़े खिताब अपने नाम किए... थाइलैंड ओपन... चीन ओपन.. स्विस ओपन.. और इंडिया ओपन... फिलहाल श्रीकांत की रैंकिंग तीसरी है.. यानि दुनियाभर में फिलहाल श्रीकांत तीसरे नंबर के खिलाड़ी हैं... जबकि कश्यप की रैंकिंग 10वीं है.. वहीं ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा की चर्चा किए बगैर अपनी बात खत्म करना ठीक नहीं होगा.. दोनों ने अभी कुछ दिनों पहले ही कनाडा ओपन का डबल्स का खिताब जीता है... और फिलहाल उनकी रैंकिंग 13वीं है... पांच पहले तक दुनिया को सिर्फ दो नाम ही याद थे... एक प्रकाश पादुकोण और दूसरे पुलेला गोपीचंद... बैडमिंटन में भारतीय खिलाड़ियों की चुनौती को बहुत हल्के में लिया जाता था...लेकिन पिछले पांच साल में तस्वीर बदल चुकी है...इस वक्त दुनियाभर में बैडमिंटन के खिलाड़ी भारतीय प्लेयर्स को ना सिर्फ बेहद मज़बूत विरोधी मानते हैं.. बल्कि उनका सम्मान भी करते हैं... चीन जैसे देश जिन्हें खेलों की फैक्ट्री का खिताब हासिल है.. वहां भी भारत का बढ़ता कद चर्चा का विषय बना हुआ है... बैडमिंटन में चीनी खिलाड़ियों को सबसे मुश्किल विरोधी कहा जाता है.. सबसे मज़बूत दीवार कहा जाता है.. उस मुश्किल को... उस दीवार को भारतीय खिलाड़ियों ने तोड़ दिया है... बैडमिंटन जैसे खेल में भारतीयों का इस तरह काबिज़ होना ये बताता है कि हमारे देश में अब बैडमिंटन का स्तर कितना ऊपर पहुंच चुका है.. और इसके लिए कम से कम पुलेला गोपीचंद को श्रेय देना तो बनता है... 

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