अभी अभी

पूजा


मां... मुझे दूध चाहिए... तूने दस दिन पहले मुझसे वादा किया था.. कि तू मुझे जल्दी ही दूध लेकर आएगी और पिलाएगी... बुधना ने अपनी मां को उलाहना और याचक का भाव एक साथ लाकर कहा... 

हां बेटा वादा किया तो था... लेकिन क्या करूं... एक तेरा बाप है.. जो दिन भर कमाता है.. और शाम को सारे पैसे अपनी दारू में उड़ा देता है... और पैसे ना होने का गुस्सा मुझपर उतारता है... इधर तू है कि तुझे छटांक भर दूध भी ना मिल पाता है... इतना कहते-कहते रामदुलारी की आंखों से दो आंसू टपक पड़े... 

ऐ मां... चल छोड़.. नहीं पीना मुझे दूध... जो भी खाने को देगी ना मैं खा लूंगा... लेकिन तू रो मत... एक दिन आएगा जब मैं खूब पैसे कमाउंगा तो फिर दूध की कमी नहीं होने दूंगा... बुधना इतना कहकर घर से बाहर निकल गया... 

12 साल की उम्र वाले को ना तो बच्चा कह सकते हैं और ना ही बड़ा... मुफलिसी ने बुधना को कुछ ज्यादा ही  समझदार बना दिया था... बाप को दारू के अलावा कुछ सूझता नहीं था.. एक मां ही थी जो उसका ख्याल रखती थी... लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा करके जितना भी कमा पाती थी...उससे घर भी चलाती थी.. और बुधना को पास के सरकारी स्कूल में पढ़ने भी भेजती थी... 

बुधना सड़क पर इधर-उधर देखता हुआ बेवजह घूम तो रहा था.. लेकिन मन में दूध पीने की इच्छा ज़ोर मार रही थी... आज माहौल भी बदला-बदला सा लग रहा था... तभी उसने देखा की थोड़ी दूर आगे एक दूधवाला ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था... मुफ्त में दूध ले लीजिए... मुफ्त में दूध ले लीजिए... बुधना के कानों में जैसे ही ये आवाज़ पड़ी वो फौरन दूधवाले के पास पहुंच गया.. 

दूधवाले भैया... मुझे में दूध दे दो... 

क्यों भई तुझे क्यों दूध दे दूं... दूधवाले ने आंखें तरेरते हुए बुधना से पूछा.. 

अरे आप ही तो कह रहे हो कि मुफ्त में दूध ले लो... तो मुझे क्यों नहीं दे रहे... 

चल भाग जा यहां से... ये दूध भगवान पर चढ़ाने के लिए है... भोलेनाथ को खुश करने के लिए मैंने मुफ्त में उन लोगों को दूध देने का फैसला किया है.. जो मंदिर में जाकर शिवलिंग पर दूध चढ़ाएंगे... और मुझे पुण्य मिलेगा...ये तेरे जैसे भिखारियों के लिए नहीं है.. भाग जा यहां से... 

दूधवाले ने एक तरह से बुधना को धक्का देते हुए हटा दिया...  

दूधवाले भैया... थोड़ा सा दूध दे दो... कई दिनों से बड़ा मन हो रहा था दूध पीने को.. वैसे भी भोलेनाथ पर तो हज़ारों लोग दूध चढ़ा रहे होंगे.. उनका मन तो भर ही जाएगा... अब तो ऐसा लगता है कि मैं दूध का स्वाद भी भूल गया हूं... एक घूंट ही दे दो... ज्यादा नहीं मांगता... 

बुधना बिल्कुल किसी भिखारी की तरह दूधवाले की खुशामद करने लगा... लेकिन दूधवाला एक घूंट भी दूध उसे देने को तैयार नहीं हुआ... लेकिन बुधना वहां से गया नहीं... वो मांगता रहा.. थोड़ी देर में दूध वाले को गुस्सा आ गया उसने दो ज़ोरदार तमाचे बुधना को मारे... थप्पड़ खाते ही बुधना की आंखों के आगे अंधेरा छा गया... रोते-रोते वो वहां से चल गया... 

सड़क पर चहल-पहल ज्यादा थी... बुधना ने देखा की पास का शिव मंदिर बेहद सजा हुआ था... सैकड़ों लोग लोटा लिए मंदिर के बाहर लाइन में लगे हुए थे... लोटे में दूध था.. जिसके हाथ में लोटा नहीं था वो तो सीधे दूध के पैकेट लेकर ही खड़ा था... सबको चिंता इस बात की थी... कि ज्यादा से ज्यादा दूध चढ़ा दें जिससे भगवान शिव खुश हो जाएं.. उनके सारे पाप कट जाएं.. और किस्मत चमक जाए... 

अब बुधना ठहरा 12 साल का जवान होता बच्चा... दिमाग में दूध अभी तक घूम रहा था... इसलिए वो चुपचाप मंदिर के पीछे पहुंच गया... मंदिर के पीछे नाली से दूध की धारा बह रही थी... उसने इधर-उधर देखा... उसे इस बात की यकीन हो गया कि कोई उसे देख नहीं रहा तो चुपके से उसने नाली में बहते दूध को अपनी अंजुली से  उठाया और पी गया... 

आहहहह... कितना शानदार स्वाद है दूूध का... समझ नहीं आता भगवान को इतना दूध चढ़ाते क्यों हैं... भला पत्थर के शिवजी दूध पीते कैसे होंगे...सारा दूध तो नाले में जाकर गिर रहा है... और अगर भगवान पीते भी होंगे तो.. पेट तो उनका कब का भर गया होगा.. और दूध पीना उन्होंने बंद कर दिया होगा... इसीलिए दूध नाली से बहकर निकल रहा है... ये सब सोचते-सोचते उसने दूसरी बार नाली से दूध निकाल कर पी लिया... और आंखें मूंद कर वो दूध के स्वाद को अपने ज़ेहन पर बिठाने लगा... शायद दो मिनट ही हुए होंगे कि तभी एक चिल्लाती हुई आवा़ज आयी... 

अरे इस भिखारी ने तो भगवान का दूध जूठा कर दिया... अनर्थ हो गया... पकड़ो इसे... 

बुधना की आंखें खुली तो उसने देखा कई लोग उसकी ओर भागे आ रहे हैं... और जब तक वो कुछ सोच-समझ पाता उसके ऊपर लात-घूंसों की बरसात हो गयी... कहां दो मिनट पहले वो दूध का स्वाद ज़ेहन पर चस्पा कर रहा था और कहां अब लात-घूंसों का स्वाद चखना पड़ रहा था... 

उधर कैलाश पर्वत पर बैठे भगवान शिव देवी पार्वती से कह रहे थे कि देखो ना कलियुग ने उन्हें कितना संकुचित और बेबस कर दिया है कि.. वो धरती पर होते इस अत्याचार के खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकते... कैलाश पर्वत की सीमा से बाहर जाना भी अब उनके लिए मुमकिन नहीं है... 

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