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मज़हब के नाम पर लड़ा जाएगा तीसरा विश्वयुद्ध



हमारी धरती ने यूं तो कई लड़ाईयां देखीं.. कई जंगों में हज़ारों लोगों को मरते देखा... छिटपुट लड़ाईयां अभी भी चल ही रही हैं... छिटपुट इसलिए क्योंकि ये सारी जंगें दो विश्वयुद्धों की बराबरी नहीं कर सकतीं.. लेकिन यहां पर एक बड़ा सवाल ये है कि क्या दुनिया एक बार फिर विश्वयुद्ध की तैयारी में जुटी है... और जहां तक मुझे लगता है इस बार तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए नहीं बल्कि धर्म के लिए होगा... मज़हब को बचाने के नाम पर लाखों लोगों की हत्याएं होंगी... धर्म के ठेकेदार नफरत के बीज बोएंगे... और फिर ये नफरत उस स्तर पर पहुंच जाएगी जहां इंसान ही इंसान के खात्मे की ओर अग्रसर हो जाएंगे... इस बार मित्र और शत्रु राष्ट्र एकजुट नहीं होंगे.. बल्कि मित्र और शत्रु धर्म के नाम पर गठबंधन होगा... या यूं कहें की होना शुरु हो चुका है...

दो-दो विश्वयुद्धों के बाद अगर कोई लड़ाई सबसे बड़ी मानी जाती है तो वो है गल्फ वॉर... गल्फ वॉर के बाद से ही दुनिया का एक बार फिर ध्रुवीकरण शुरु हुआ.. उसके बाद इराक.. अफगानिस्तान... लीबिया... सीरिया...और ना जाने तमाम ऐसे देश जहां पर इस ध्रुवीकरण को और ज्यादा मज़बूत.. और ज्यादा फैलाया जा सके... इसके लिए काम किया गया... ISIS जैसे संगठन की पैदाइश कोई रातों रात नहीं हो गयी... इसे एक मकसद के लिए पैदा किया गया है.. और ऐसा भी नहीं है कि इसके पीछे सिर्फ मुस्लिम चरमपंथी गुट ही हो... बल्कि इसके पीछे एक सोची-समझी साज़िश भी हो सकती है... कई विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि अमेरिका.. इज़रायल के साथ कई मुस्लिम संगठनों की सांठ-गांठ है ये ISIS...

अब जबकि रूस भी इस जंग में कूद पड़ा है तो समीकरण बदलने लगे हैं... अमेरिका को ये नागवार गुज़र रहा है कि रूस ने उसे सीधी चुनौती दे दी है... विशेषज्ञों की राय पर भी इस पर बंटी हुई है... कई लोगों का ये मानना है कि अगर अमेरिका सहित कई देश मिलकर ISIS पर पिछले लंबे वक्त से हमला कर रहे हैं तो वो अबतक उसे खत्म क्यों नहीं कर पाए हैं... दरअसल मामला यहीं फंसा हुआ है... ISIS सीधे सीरिया की सरकार को चुनौती दे रही है... और कहीं ना कहीं अमेरिका सहित दूसरे पश्चिमी देशों का असद की सरकार को हटाना फायदेमंद होगा.. .लेकिन रूस के इस लड़ाई में शामिल हो जाने के बाद हालात एकदम से बदल गए हैं.. क्योंकि रूस इसमें असद का साथ दे रहा है.. और यही बात अमेरिका को खराब लग रही है... यानि ISIS के बहाने रूस और अमेरिका एक बार फिर आमने सामने हैं...

याद कीजिए दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत कैसे हुई थी... कैसे हिटलर के खिलाफ अमेरिका को जंग में कूदना पड़ा था... लेकिन उस वक्त रूस और अमेरिका एक ही खेमे में थे... दूसरा खेमा था हिटलर का जिसकी महत्वकांक्षा और पहले विश्वयुद्ध की खीझ ने दूसरे विश्वयुद्ध को जन्म दिया... खैर लेकिन अब परिस्थितियां उल्टी हैं... हिटलर की जगह पर इस वक्त आतंकी संगठन ISIS मौजूद है... रूस का आरोप है कि अमेरिका और दूसरे कई देश मिलकर उसे कमज़ोर करने की चाल चल रहे हैं.. और उसमें उन्होंने ISIS को मोहरा बनाया हुआ है...

रूस का तो ये भी आरोप है कि उसके रूपए रूबल को कमज़ोर करने के लिए अमेरिका और सऊदी अरब ने मिलकर कच्चे तेल की कीमतों को कम करने की साज़िश रची... और ऐसा तभी मुमकिन हुआ जब ISIS के कब्ज़े वाले तेल के कुओं से कौड़ियों के दाम पर कच्चा तेल खरीदा गया... जिससे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें आधी हो गयीं... रुस के लिए परेशानी ये हुई कि उसे कच्चे तेल के उत्पादन में ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे थे... यानि बाज़ार में कच्चा तेल जितने पैसे पर बिक रहा था उससे करीब दूना पैसा रूस को कच्चा तेल निकालने में खर्च करना पड़ रहा था...


अब सवाल ये है कि क्या वाकई दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध की ओर बढ़ रही है... जवाब है हां... युद्ध का मतलब ये नहीं है कि दोनों ओर से मिसाइलें छोड़ी जाएं... गोले बरसाए जाएं... आज के ज़माने में युद्ध का मतलब ये है कि किसी देश को आर्थिक, सामजिक और मज़हबी रुप में इतना कमज़ोर कर दिया जाए कि वो खुद ही खत्म हो जाए... क्योंकि जहां बात धर्म के नाम पर लड़ने और धर्म को बचाने की बात आती है... तो लोग भूखे पेट भी लड़ने को तैयार हो जाते हैं... दरअसल इस्लाम की जो तस्वीर फिलहाल दुनिया को दिखायी जा रही है वो बेहद खतरनाक है... गैर इस्लामी लोगों के दिलों में इस्लाम का नाम आतंक की तरह छपता जा रहा है... यही काम यहूदियों, ईसाइयों और हिंदुओं में भी किया जा रहा है... कट्टरता को हर ओर से बढ़ाया जा रहा है... और धार्मिक कट्टरता जब अपने चरम पर होगी तो आप आसानी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वो युद्ध पिछले दोनों विश्वयुद्धों से कितना भयानक और कितना खूंखार होगा... 

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