यही दुनिया है....
यही दुनिया है
यही दुनिया की रीत है
हंस कर बोलते हैं सभी सामने
पीठ पीछे लगते हैं गला दबाने
राम जाने ये कैसी प्रीत है...
यही दुनिया है..
यही दुनिया की रीत है...
दोस्तों में कैसे ढूंढे दुश्मन...
समझ नहीं आता है...
दुश्मन भी कभी-कभी दुआ दे देते हैं
पर ना जाने क्यों यकीन नहीं आता है
यही दुनिया है...
यही दुनिया की रीत है...
अब तो उपरवाले तेरा ही सहारा है
अब तो सब जग हारा है
चाहता हूं खुद से खड़ा हो जाउं
अपनी राह खुद बनाउं
मंजिल भी अपनी हो
साथ चलने वाले भी अपने हो
तभी अपनी जीत है
यही दुनिया है...
यही दुनिया की रीत है...
©Alok Ranjan
बेहतरीन रचना है..उम्मीद करता हूं कलम की धार यूं ही बनी रहेगी..
ReplyDeleteशुक्रिया भाई... आशा तो यही है कि कीबोर्ड वाली कलम यूं ही चलती रहेगी...
ReplyDeleteAlok bhai...Dosti me Diljale lagte hain aap. Blog ke liye Badhai...Kavi hridhya Alok ko pehli bar padh raha huin...Chalte raho badte raho...
ReplyDeletealok babu!
ReplyDeleteindino kuch aisee hee sthiti banee hui hai...so aapki ye rachna mere dil k behad kareeb se gijree!
यही दुनिया है...
यही दुनिया की रीत है...
kyaa bat kahee hai aapne. wyawasaayikataa me log kitane mashgool, masroof aur swaarthi ho jate hain, yah sochanaa hee chor dete hain ki koi jane anjane me unkee wajah se niradhar nirupaay ho raha hai.
Really Very Nice dear.Keep it up.Best of Luck
ReplyDeletenice effort... keep going
ReplyDeleteluck nd wishes
vivek
"हंस कर बोलते हैं सभी सामने
ReplyDeleteपीठ पीछे लगते हैं गला दबाने
राम जाने ये कैसी प्रीत है... "
वर्तमान यथार्थ का सही चित्रण है भाया तुम्हारी इस रचना में..
तुम तो सदा ही अच्छा लिखते हो दोस्त...
ReplyDeleteभाई ये तो indianews का दर्द है...पहले तु ऐसा तो नहीं था... रुला तो सब लेते है हंसाओ तो जाने...
ReplyDeleteभाई ये तो indianews का दर्द है...पहले तु ऐसा तो नहीं था... रुला तो सब लेते है हंसाओ तो जाने...
ReplyDeleteउदासियां समेट कर जहां भर की
ReplyDeleteकुछ और न बन सका तो मेरा दिल बना दिया।
पहले प्रयास के हिसाब से बहुत अच्छी कविता है। रचते रहिए...लेकिन अपने माहौल से इतना निराश होने की जरूरत नहीं है ।
we shall overcome someday.
pehli kavita ke liye badhai ho...
ReplyDeletebaot acchi lagi aapki kavita... asha hai aage bhi aise hi kavita padne ko milegi.....
jaya srivastava
दुनिया की यही रीत है, क्या करेंगे, दुनिया बनाने वाले काहे को दुनिया बनाई.....कहने से अच्छा है, दुनिया में अगर आए हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा....और जीना है तो हंस के जिओ...!
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ReplyDeletekhas jami nahin. phir bhi pahla prayas theek hai.
ReplyDeletekhas jami nahin. phir bhi pahla prayas theek hai.
ReplyDeleteअरे रंजनवा....
ReplyDeleteमैं तो चुप्पे ही रहता हूँ!
अरे नटखट, कहाँ चुप रहते हो तुम!
क्या बोलते हो......!!!
कभी इहाँ भी आओ.....
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फिल्लौर फ़िल्म फेस्टिवल!!!!!
www.myexperimentswithloveandlife.blogspot.com
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया.. आपके सुझाव पर ज़रूर अमल करूंगा... जिन्होंने सराहा उनको एक बार फिर धन्यवाद...
ReplyDeletevery good effort , tumari kavita se tumara dard dikh raha hai...sach batao kiske sataye hue ho
ReplyDeletejindgi ke dhoop chao me jameen se judi racna hai aapki sir ..................मैं तो जी चुप ही रहता हूं !.....patrkarita jagat ki nayi bhasha hai ..kyoki sari galat cheejo ko dekh har chup rahna padta hai ...filhal job to awaj uthane ki hai ,,,logo ko haq dilane ki hai ...par yaha to ulta .....sabhi media me naukri bachane ki job karte najar aate hai ....aapko chup rahne par badhaee...
ReplyDeleteYAAR TU BINA BOLE BLOG HI LIKHA KAR. PLZ KAVITA NAHI....
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