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ऐ साला कौन बोला रे.. बिहार में जंगलराज


बिहार में रिटर्न ऑफ जंगलराज

वैसे ये कहना अभी जल्दबाज़ी है, लेकिन भविष्य के बारे में बात करना तो जल्दबाज़ी नहीं ही है. बिहार चुनाव में बड़ा ज़बरदस्त नारा चला था एक बार फिर से नीतीशे... नीतीश जी आएं... मुख्यमंत्री बनें... बिहार के लोगों ने जनादेश दिया है उसका सम्मान किया जाना चाहिए. लेकिन सम्मान उन्हें भी करना चाहिए जिनके हाथों में इस वक्त सत्ता की बागडोर है. 

दरअसल बिहार में इस बार रिटर्न ऑफ नीतीश कुमार नहीं हुआ है बल्कि रिटर्न ऑफ लालू यादव हुआ है. और लालू यादव के शासन काल को यही नीतीश कुमार जी अपने मुखारविंदु से एक दो बार नहीं हज़ार बार जंगलराज कह चुके हैं. खैर ये तो बीते वक्त की बात हो गयी. नए निज़ाम में नीतीश जी थोड़े असहाय नज़र आ रहे हैं. क्राइम के ग्राफ में एकाएक इज़ाफा होने लगा है. जिन सड़कों पर लोग रात में किसी भी वक्त सफर करने में हिचकते नहीं थे अब शाम सात-आठ बजते ही घरों में दुबक जाते हैं. 

अब सवाल ये है कि आखिर लोगों के दिलों में वो पुराना डर एक बार क्यों हावी होता चला जा रहा है. क्यों लॉ एंड ऑर्डर पर लोगों को भरोसा एक बार फिर वही पुराने वक्त जैसा हो गया है जिसे जंगलराज का नाम दिया गया था. मैं बिहार में जहां का निवासी हूं वहां कभी कभार ही सुनने को मिलता था कि कोई अपराध हुआ है. अपराध होते भी थे तो छोटे-मोटे, लेकिन पिछले एक महीने में वहां मर्डर की दो वारदातें, राह चलते लोगों से बाइक छीन लेने, उन्हें लूट लेने की 7-8 वारदातें, किडनैपिंग की दो वारदातें हुई हैं. ज़ाहिर है ऐसे वाक्ये डराने के लिए काफी है. और ये सब किसी शहर में नहीं हुआ है बल्कि छोटे से चौक जिसे हमारे यहां मोड़ कहा जाता है वहां हुआ है. तो ज़रा आप ही अंदाज़ा लगा लीजिए की पूरे ज़िले या फिर पूरे बिहार का हाल क्या हो गया है या क्या हो सकता है.

पिछले कुछ सालों से लोगों के ज़ेहन से ये डर निकल चुका था. ऐसा नहीं था कि अपराध होने बंद हो गए थे लेकिन उनमें ज़बरदस्त कमी ज़रूर आयी थी. व्यवसायियों में भी डर बैठा हुआ है. कहीं ना कहीं से रंगदारी की डिमांड आ ही जा रही है. भई किसे अपनी जान की चिंता नहीं है. अपने बच्चों को बिहार से निकाल कर दूसरे राज्यों में भेजने का सिलसिला एक बार फिर शुरु हो चुका है जो कभी लालू राज में हुआ करता था. 

ज़ाहिर है ऐसे संकेत बिहार के लिए अच्छे नहीं हैं. बिहार जिस राह पर पिछले कुछ सालों से चलना शुरु हुआ था वो राह उसे आगे ले जा रही थी. उसे मज़बूत और प्रगतिशील बना रही थी. बिहारियों को भी लगने लगा था कि चलो यार वापस अपने गांव अपने शहर चलते हैं. वहीं पर कुछ करेंगे. परदेस को आखिर परदेस ही है लेकिन एक बार फिर उन्हें अपने विचारों को थामना पड़ रहा है. एक बार फिर उन्हें मन मसोस कर रह जाना पड़ रहा है. बिहार और बिहारियों की छवि दूसरे राज्यों में धीर-धीरे बदलनी शुरु हुई थी वो एक बार फिर से पुराने रंग में रंगनी शुरु हो चुकी है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश जी से आग्रह है कि बिहार को जंगलराज से बचाएं. जिस जंगलराज से बचने के लिए जनता ने आपको सत्ता की चाभी सौंपी थी उसे गुम ना करें क्योंकि ये चाभी आजीवन तो आपके दी नहीं गयी है जहां दशकों तक बिहार की जनता ने जंगलराज सहा है वहां पांच साल और सही. 


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