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भगवान है तो शैतान भी है ! पार्ट - 3


मैं घर की तरफ दौड़ा....
' तुम लोगों ने ठीक नहीं किया... तुम लोग जानते नहीं मैं क्या कर सकता हूं... सब खत्म हो जाएगा... मैं नहीं चाहता कि मेरा घर बरबाद हो... लेकिन इसके जिम्मेदार तुम ही लोग हो... फकीर को क्यों बुलाया...'
गुड़िया की आवाज़ बिल्कुल किसी मर्द की तरह निकल रही थी... आवाज़ में गुर्राहट और उसे और ज्यादा डरावना बना रही थी... पूरा परिवार परेशान था...किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए... खैर चाचाजी ने हिम्मत की...
' देखिए आप जो भी हैं... अगर फकीर को ना बुलाते तो हमें कैसे पता चलता कि आप कौन हैं... '
' तुम मुझसे पूछ लेते...'
' लेकिन हमें थोड़े ही ना पता था'
' ये ठीक नहीं हुआ... ये ठीक नहीं हुआ'
इतना कहते ही गुड़िया बेहोश हो गयी... मुश्किल से 30 सेकेंड बाद उसने आंखें खोली...
' मां... सर में बहुत दर्द है...आप सब लोग यहां पर क्यों हैं...'
' कुछ नहीं बेटा...आप सोयीं हुई थी... और हम सब यहां पर बातें कर रहे थे... आप सो जाओ...'
मैंने चाचाजी की आंखों में दर्द देखा... आंसू बस छलकने ही वाले थे... वो वहां से फौरन चले गए... मैं उनका दर्द समझ सकता था... खैर... हम फौरन दादी के पास गए... पापा ने पूछा...
' मां...क्या कभी आपने अपने खानदान में सुना है कि किसी बच्चे की अकाल मृत्यु हो गयी हो.'
' नहीं तो...ऐसा तो कभी नहीं हुआ...मुझे याद तो नहीं आ रहा... लेकिन हां...मुझे याद आया'
दादी के इतना कहते ही सबके चेहरे पर हैरानगी के भाव आ गए... शायद मेरी तरह सब यही सोच रहे थे कि क्या सच में ऐसा होता है...
' बड़े दादाजी के खानदान में ऐसा हुआ था... उनके दादा जी के सबसे छोटे बेटे को किसी ने ज़हर देकर मार दिया था...लेकिन ये तो बहुत पुरानी बात है... तुम्हारी दादी ने एक बार इसके बारे में जिक्र किया था... '
पापा ने पूछा...
'क्या कभी पता चल पाया कि उन्हें किसने मारा था '
'नहीं लेकिन कहा जाता है किसी घरवाले का ही काम था '
खैर हम लोग दादी के कमरे से बाहर आ गए...सबकी हवाईयां उड़ी हुई थी... किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था...कि जब मनुष्य मंगल पर कदम रखने की सोच रहा है.. तब ऐसा भी कुछ हो सकता है... मुझे तो सबसे ज्यादा हैरानी हो रही थी... किसी तरह रात कटी... अगले दिन फकीर फिर सुबह-सुबह आ गया...
कल जिस जगह पर गु़ड़िया को बिठाया गया था... वहीं पर उसे दुबारा लाया गया... फिर वही नज़ारा एक बार फिर देखने को मिला.. गुड़िया बेहद गुस्से में थी... आवाज़ में जबरदस्त गुर्राहट थी... फकीर के फिर आने से वो बेहद नाराज़ थी... लेकिन फकीर की बातों का उसपर गजब असर हुआ... उसके शरीर पर जिस किसी भी शक्ति का साया था... वो शांत हो गया... फकीर ने पूछा...
'बाबा... हम भी आपकी भलाई ही चाहते हैं... आपको क्या चाहिए '
'मुझे मुक्ति चाहिए...मुझे किसी भी तरह से मुक्त कर दो...मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था... कई सालों से मैं ये कोशिश कर रहा था... लेकिन कोई भी मुझे देख और सुन नहीं पा रहा था '
'आपको मुक्ति कैसे मिलेगी ' फकीर ने पूछा..
'मंगलवार के दिन... गांव में जो माता का मंदिर है... वहां पर एक नीम का पेड़ृ है '
'हां.,.. बाबा है ' पापा ने कहा..
'वहां पर एक लाल लंगोट...एक बोतल शराब.. और मिठाई चढ़ा देना '
'ठीक है बाबा.. चढ़ा देंगे.. लेकिन क्या गारंटी है कि आप दोबारा इस बच्ची को परेशान नहीं करेंगे'
'फकीर मुझे फिर गुस्सा मत दिला...मैं तो इसी परिवार का हूं.. मैं अपने ही बच्चों को परेशान थोड़े ही ना करूंगा..ठीक है मैं चलता हूं... लेकिन अगले मंगलवार को ये हो जाना चाहिए'
'हो जाएगा बाबा...हो जाएगा'
गुड़िया फिर ठीक हो गयी... लेकिन हमेशा की तरह उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था... पूरे शरीर में भी दर्द था... उसे बिस्तर पर लिटा दिया गया... लेटते ही वो सो गयी...
फकीर ने कहा...
'चलिए उपर वाले की दया से कोई बड़ी मुसीबत नहीं थी... शुक्र मनाइए की घर की शक्ति थी..अगर कोई बाहरी होती तो बेहद मुश्किल होती..अब सब ठीक हो जाएगा...अब मेरा काम खत्म हुआ... मंगलवार को जो बाबा ने बताया है उसे पूरा कर दीजिए...फिर कुछ नहीं होगा'
'चलिए बाबा हमारी भी यही दुआ है कि सब ठीक हो जाए'
पापा ने फकीर को कुछ पैसे देने चाहे... लेकिन उन्होंने लेने से मना कर दिया.. अगले मंगलवार को हमने वही किया जो उन्होंने बताया था... इस घटना को करीब 10 साल बीत चुके हैं... गुड़िया बिल्कुल ठीक है... उसकी शादी को 4 साल हो चुके हैं... वो अपने परिवार के साथ मस्त है... फिर कभी उसे वैसी परेशानी नहीं हुई... लेकिन उस घटना ने पूरे परिवार के सोचने का नज़रिया बदल दिया... हम सब इन सब बातों का मज़ाक उड़ाते थे.. लेकिन अब ठीक उसी तरह यकीन करते है...जैसे भगवान पर... जिस तरह दुनिया पॉजीटिव और निगेटिव दोनों ही तरह की चीजें होती हैं... उसी तरह भगवान पर यकीन करने वालों को शैतान या फिर यूं कहें की दूसरी शक्तियों पर भी यकीन करना चाहिए...

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