आज़ादी की लड़ाई में मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान की अहमियत
मुंबई का अगस्त क्रांति मैदान आज़ादी की लड़ाई का सबसे बड़ा गवाह रहा है, इस मैदान का भारत की आज़ादी की लड़ाई में एक अहम योगदान है.. 74 साल पहले 9 अगस्त 1942 को इसी मैदान से अंग्रेज़ों भारत छोड़ो का शंखनाद हुआ.. इसी शंखनाद का असर हुआ कि देशभर के एक बड़े जनसमूह को अंग्रेज़ों के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ने की प्रेरणा मिली.. दरअसल दूसरे विश्वयुद्ध के लिए भारतीयों का समर्थन प्राप्त करने के इरादे ने ब्रिटेन ने स्टेफोर्ड क्रिप्स को मार्च 1942 में भारत भेजा.. लेकिन भारतीय प्रतिनिधियों ने क्रिप्स मिशन को खारिज कर दिया.. 8 अगस्त 1942 को भारतीय नेशनल कांग्रेस की बैठक मुंबई में हुई.. और इसमें फैसला लिया गया कि अंग्रेज़ों को हर हाल में भारत छोड़ना ही होगा.. तय किया गया कि अगस्त क्रांति मैदान में इसकी शुरुआत झंडा फहरा कर होगी.. उस आंदोलन में जी जी पारिख भी शामिल थे.. उस वक्त उनकी उम्र 17-18 साल थी.. अब वो 92 साल के हो चुके हैं.. लेकिन आज भी उन्हें अगस्त क्रांति मैदान का वो नज़ारा अच्छी तरह याद है, परीख जी कहते हैं
"पूरा मैदान भरा हुआ था सुबह.. यानि झंडावंदन के लिए.. 7-8 तारीख की तो मीटिंग थी.. तो थे ही लोग.. और बड़े पैमाने पर पूरे बंबई शहर में.. बंबई शहर छोटा था उस वक्त.. पूरे बंबई शहर से लोग आए थे.. काफी लोग थे.. और महिलाएं भी थीं.. लेकिन युवा लोग ज्यादा थे"
पहले इस का नाम गोवालिया टैंक मैदान था.. गो मतलब गाय और वालिया का मतलब गाय का मालिक... तब ये मैदान गाय-भैंसों को नहलाने के काम आता था.. लेकिन 9 अगस्त 1942 को यहां भारत छोड़ो आंदोलन की नींव पड़ी.. और इसका नया नामकरण हुआ.. अगस्त क्रांति मैदान.. हज़ारों की भीड़ यहां मौजूद थी.. लेकिन गांधी जी.. जवाहर लाल नेहरू.. अबुल कलाम आज़ाद.. वल्लभ भाई पटेल सहित सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जी जी परीख आगे बताते हैं
"वो आ नहीं पाए.. क्योंकि सबको पकड़ लिया गया था सुबह पांच बजे.. लेकिन अरुणा आसफ अली जी आयीं.. और झंडा वंदन करके चली गयीं.. हमारे हज़ारों लोग थे उस वक्त मैदान में.. उस वक्त बारिश हो रही थी थोड़ी थोड़ी.. तो उस वक्त उनको रोकने के लिए पहली दफा हिंदुस्तान के अंदर आंसू गैस छोड़ा गया"
इसके ठीक एक दिन पहले जो बैठक हुई थी.. उसमें बापू ने एक नारा दिया था.. और इस नारे ने अंग्रेज़ों के खिलाफ आंदोलन को मज़बूती देने बड़ी अहम भूमिका निभायी, बापू के परपोते तुषार गांधी इस नारे के बारे में बताते हैं
"आखिर में गांधी जी ने माना कि अब आखिरी धक्का देने का वक्त आ गया है.. अंग्रेज़ों को हमने बहुत मनाने की कोशिश की.. कि वो मान के चले जाएं.. अब धक्का देना पड़ेगा.. अब तबतक हम नहीं रुकेंगे जब तक आज़ादी हमे मिल ना जाए"
जी जी परीख को महात्मा गांधी की उस बैठक की याद अभी भी ताज़ा है, वो कहते हैं
"उन्होंने पहले जो परिस्थिति थी उसका वर्णन किया.. ये आखिरी लड़ाई है ऐसा उन्होंने कहा.. और कहा.. या तो आप मरिए.. आज़ादी के लिए... आप लड़ते रहिए.. करो या मरो.. इस किसम का एक नारा उन्होंने दिया.. उस वक्त काफी लोगों ने उनके नारे को दोहराया.. ये दो दफे हुआ"
करो या मरो के इस नारे यानि बापू के इऩ शब्दों ने भारत की जनता पर जादू जैसा असर डाला.. वो नए जोश.. नए साहस और नए संकल्प के साथ आज़ादी की लडाई में कूद पड़े.. देश के कोने-कोने से करो या मरो की आवाज़ गूंजने लगी, बापू के परपोते तुषार गांधी बताते हैं कि
"अगस्त क्रांति मैदान में जो किया गया और ऐलान जो किया गया.. करेंगे या मरेंगे उसके दस दिन के अंदर अंग्रेज़ों ने कांग्रेस की जो सारी टॉप लीडरशिप थी.. उसको गिरफ्तार करके जेलों में डाल दिया"
9 अगस्त 1942 को ऑपरेशन ज़ीरो ऑवर के तहत कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेता गिरफ्तार कर लिए गए.. गांधी जी को पूना के आगा खां महल और कांग्रेस कार्यकारिणी के बाकी सदस्यों को अहमदनगर के किले में रखा गया... ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को गैर-कानूनी संस्था घोषित कर दिया और जुलूस निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया.. लेकिन आंदोलन की आग तो भड़क चुकी थी.. जिसे नेताओं की गिरफ्तारी ने और हवा दे दी.. सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए जब लाठी और बंदूक का सहारा लिया तो आंदोलन का रुख बदलकर हिंसात्मक हो गया.. कई जगहों पर रेल पटरियां उखाड़ी गयीं.. स्टेशनों में आग लगा दी गयी, जी जी परीख को अब भी याद है कि सरकार की इन कार्रवाईयों से निपटने के लिए किस तरह पहले ही तैयारी कर ली गयी थी
"उसके पहले ही एक मीटिंग हो चुकी थी.. जिसके अंदर ये तय किया गया था कि सोशलिस्ट और कुछ कांग्रेस मैन अंडरग्राउंड जाएंगे और अंडरग्राउंड जाकर जिस तरीके से आंदोलन को ज़िंदा रख सकते हैं.. उस तरह से करने की कोशिश करेंगे.. तो ये निर्णय पहले हो चुका था.. और उसका असर 9 तारीख के बाद पूरे हिंदुस्तान में दिखाई दिया"
अगस्त क्रांति मैदान से शुरु हुआ भारत छोड़ो आंदोलन अब जन आंदोलन के रुप में तब्दील हो चुका था.. भारत का हर जाति वर्ग के लोग इसमें शामिल थे खासकर युवा.. उन्होंने अपने कॉलेज छोड़ दिए.. और जेल का रास्ता अपनाने लगे...
"कुर्बानियां दीं.. और उसका जो टोटल इफेक्ट हुआ.. वो ये हुआ कि अंग्रेज़ समझ गए कि जिस मुल्क का एक भी आदमी नहीं चाहता कि हम रहें.. हां थोड़े बहुत उनके पिट्ठू थे.. लेकिन ज्यादातर लोग उनको नहीं चाहते थे - तुषार गांधी, गांधी जी के परपोते"
भारत छोड़ो आंदोलन भले ही भारत को आज़ाद ना करा पाया.. लेकिन उसके इतने बड़े रूप को देखकर अंग्रेज़ों को ये मानना पड़ा कि उन्होंने भारत पर शासन का अधिकार खो दिया है... आखिरकार लंबे संघर्ष के बाद अंग्रेज़ों ने हार मान ली.. और 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हो गया. आज़ादी का जो दिया अगस्त क्रांति मैदान में जलाया गया था.. उसे बुझने नहीं दिया गया.. अंग्रेज़ों के ज़ुल्म के बीच भी ये दिया मैदान में जलता रहा..
"अगस्त क्रांति ग्रुप इन्होंने साइलेंट पोसेशन निकालना शुरु किया.. चौपाटी से निकलते थे और आज़ाद मैदान तक जाते थे.. वहां जाकर कर शहीदों को श्रद्धांजलि देते थे.. तो हम लोगों ने 9 अगस्त को.. याद करने के लिए साइलेंट पोसेशन निकालने की प्रथा शुरु की - जी जी परीख, स्वतंत्रता सेनानी "
लेकिन आजादी के इतने सालों बाद मुंबई का ये ऐतिहासिक मैदान अपनी बदहाली का कहानी खुद बयां कर रहा है... कोई न कोई कार्यक्रम यहां हमेशा होता रहता है.. बड़े मौकों पर नेताओं को इस ऐतिहासिक जगह की याद तो आती है लेकिन इस मैदान की बदहाली को बेहतर करने के बारे में कोई नहीं सोचता, आज़ादी की लड़ाई का गवाह ये अगस्त क्रांति मैदान कई टुकड़ों में बंट चुका है... रोज़ किसी ना किसी समारोह का आयोजन यहां होता रहता है.. लेकिन जिस तरह से आज़ादी की इस धरोहर को संभालना था.. वो जज़्बा शायद कहीं पीछे छूट गया.
"पहले एक ग्राउंड के पांच ग्राउंड हो गए.. पांच ग्राउंड में जो इसकी ओरिजनलिटी है वो चली जा रही है.. यहां पर जो जिम वगैरह बना दिए.. बिना किसी परमिशन के.. ये सारी चीज़ें जो दिख रही है ना सर.. ये सबको पता है.. लेकिन इसमें जो प्रशासन है,. वो सीरियस नहीं है - शरद चिंतनकर, स्थानीय निवासी, मुंबई"
उम्मीद है कि अब शायद सरकार और प्रशासन इस धरोहर को सजाने और संवारने के बारे में सोचे.. क्योंकि इस मैदान से हमारी आज़ादी की लड़ाई की अमूल्य यादें जुड़ी हैं.. जिनके बारे में हमारी आने वाली पीढ़ियों को जानने का पूरा हक है...
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