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25 सालों में कैसे बदला घर का सपना हकीकत में ?


हम सबकी तीन बुनियादी ज़रूरतें होती हैं.. रोटी.. कपड़ा और मकान... कहते हैं कि सिर के ऊपर अपनी छत हो गयी तो आप एक कामयाब इंसान माने जाते हैं.. पिछले 25 सालों में मकान.. या कहें घर की परिभाषा बदल गयी है... 25 साल पहले आम आदमी के लिए घर बनाना एक सपना भर होता था... जिसे पूरा करने में पूरी उमर निकल जाती थी.. लेकिन अब 25 साल बाद घर सपना नहीं रह गया है...

पिछले 25 सालों में घर... सपने से हकीकत में बदल गया... 25 साल पहले घर के बारे में रिटायरमेंट के वक्त सोचा जाता था.. या पैसे जोड़ते-जोड़ते वक्त इतना बीत जाता कि घर का सपना देखना ही 50 की उम्र में शुरु होता.. ऐसा इसलिए होता था.. क्योंकि पैसे आसानी से उपलब्ध नहीं थे... और घर बनाना ज़िंदगी का सबसे मुश्किल काम होता था... सोने के कारोबारी कुमार जैन पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं 

जो सरकारी नौकरी में थे उन्हें बहुत आसानी से लोन मिल जाता था.. लेकिन हमारे जैसा कोई बिजनेसमैन गया तो कम से कम उससे 25-50 पेपर मांगे जाते थे.. उन पेपरों को इंडीविजुअली अप्रूव किया जाता था.. उसके लिए 10-15 फोन कॉल्स आते थे.. उनकी रेफरेंस पूछी जाती थी.. उसके बाद कहीं जाकर अप्रूवल मिलता था


1991 और 2016 के बीच घर को लेकर आम आदमी से लेकर बैंकों तक ने बड़े बदलाव देखे हैं... फिर वो चाहे बात लोन अमाउंट की हो.. उस पर लगने वाले ब्याज़ की.. या फिर उससे होने वाले टैक्स के फायदे की हो...

1991 में बैंकों से होम लोन मिलने की औसत राशि 99 हज़ार रुपए थी... लेकिन 25 साल बाद यानि 2016 में ये बढ़कर 25 लाख हो गयी है... बैंकों से लोन लेने की औसत उम्र करीब 43 साल थी.. जो कि अब 38 साल हो गयी है... उस वक्त औसत ब्याज़ दर 12 फीसदी थी.. जबकि अब होम लोन करीब साढ़े नौ फीसदी में ही मिल जा रहा है... 25 साल पहले होम लोन के प्रिंसपल और इंटरेस्ट को मिलाकर टैक्स में करीब 19 हज़ार की छूट मिलती थी.. जबकि अब ये छूट करीब चार लाख रुपए की हो गयी है...

घर को सपने से निकालकर आम आदमी के हाथों तक पहुंचाने के पीछे दो बड़ी वजहें रहीं... पहली आर्थिक उदारीकरण.. और दूसरी तकनीक... आर्थिक उदारीकरण ने लोगों की आमदनी बढ़ायी और तकनीक ने होम लोन की लेन-देन प्रक्रिया को आसान बनाया...पहले जहां होम लोन मिलने में दर्जनों अड़चने होती थीं... वहीं अब होम लोन देने के लिए बैंकों की लाइन लगी रहती है, एचडीएफसी बैंक की एमडी रेणु सूद बताती हैं 

उन दिनों में जब हम लोग लोन दिया करते थे.. तो समय ज्यादा लगता था.. लोन देने में अगर हम कहते थे.. कि एक महीने में लोन मिल जाएगा तो वो कहते थे अच्छा एक महीने में.. .इतनी जल्दी.. अभी आप मेरे पास आए और मेरे से पूछे होम लोन कितने दिन में आप सैंक्शन दे देंगे.. और मैं बोलूं की चार दिन में.. तो आप बोलेंगे चार दिन में.. मुझे तो वो कंपनी दो दिन में ही दे रही है

कारोबारी भी मानते हैं कि बैंकिंग नियमों में सुधार ने काफी कुछ आसान कर दिया है, व्यापारी वृशांक जैन कहते हैं

जब से मैं आया हूं.. तबसे देखा है कि बहुत इज़ी हो गया है बैंकिंग सिस्टम.. बहुत अपग्रेड हो गए हैं.. जिधर चाहिए उधर लोन बहुत आसानी से मिल जाता है.. और जब से इनकम भी थोड़ी सी बढ़ गयी है.. तो उससे ईएमआई भी काफी आसानी से हो जाता है

लेकिन पहले ये इतना आसान नहीं था... ना ही बैंकों के लिए और ना ही उनके लिए जो घर खरीदना चाहते थे


1991 में बैंक घर की कुल कीमत का औसतन 85 फीसदी ही लोन देते थे... और इस पर ब्याज़ दर फिक्स होती थी... यानि एक बार जो ब्याज़ दर तय हो गयी उसमें फिर बदलाव नहीं होते थे... लेकिन 25 साल बाद यानि 2016 में बैंक घर की कुल कीमत का औसतन 65 फीसदी ही लोन देते हैं... और इस पर दिए जाने वाले ब्याज़ की दर 85 फीसदी तक फ्लोटिंग यानि बदलने वाली हो गयी है

यानि वक्त बदला.. हालात बेहतर हुए... तो घर भी बदल गया...  बैंकों ने तकनीक का सहारा लिया.. साथ ही पिछले पचीस सालों में लोगों की आमदनी भी बढ़ी.. तकनीक और बढ़ी आमदनी के इस मेल ने घर तक लोगों की पहुंच आसान कर दी, एचडीएफसी बैंक की एमडी रेणु सूद कहती हैं 

तकनीक से बड़ा रोल  प्ले किया है.. तकनीक ने दोनों के लिए हमारे लिए भी.. कस्टमर के लिए भी.. कस्टमर के लिए ये सहूलियत है कि ज्यादा जल्दी जल्दी लोन मिल सकते हैं.. हमारे लिए तकनीक का फायदा ये है कि हम चेक बहुत तेज़ कर पाते हैं

लोगों को भी तकनीक का भारी फायदा हुआ है, घर खरीदना या घर बनवाना पहले बहुत बड़ी बात मानी जाती थी क्योंकि ज़ाहिर तौर पर इसमें मुश्किलें बहुत थी, सबसे बड़ी समस्या पैसे की थी, पर अब तकनीक और बैंकों के बदले नियमों ने ये सब बेहद आसान बना दिया है, घर खरीदना अब कोई नामुमकिन काम नहीं रहा, सोने के कारोबारी वृशांक जैन कहते हैं

अगर देखा जाए तो सबसे.. आज की तारीख में कोई भी इतनी कोई बड़ी समस्या है नहीं.. आज घर किधर भी बहुत आसानी से मिल जाता है.. अगर किसी को कीमत की समस्या है तो थोड़ा दूर जाएंगे बांबे से.. पर उसके बजट में आ जाएगा.. अगर जिसको जैसा भी घर चाहिए.. आज मिलना बहुत आसान है

यानि जिसका जैसा बजट.. उसके लिए वैसा ही घर... 25 साल पहले जिस घर को बनाने में पूरी उम्र निकल जाती थी.. अब वो घर जवानी में ही मिल रहे हैं... खासकर युवाओँ में नौकरी के बाद अपना घर लेने की चाहत का बढ़ना भी एक बड़ी वजह हो सकती है, एचडीएफसी बैंक की एमडी रेणु सूद बताती हैं कि घर खरीदने की औसत उम्र घट गयी है

ज्यादातर चालीस.. बयालिस के करीब होती थी उम्र घर लेने की.. आजकल वो उम्र हो गयी है 37-38 साल.. अच्छा उसका कारण है कि सैलरी बढ़ गयी है.. दूसरा तकनीक.. का इस्तेमाल बढ़ा है इमारतों को तेज़ गति से बनाने में

पिछले 25 सालों में दुनिया बदली तो इसमें रहने के ढंग भी बदले... हमारे घरों पर भी इसका असर हुआ... किराए के एक कमरे से निकल कर अब हमारी चाहत कम से कम...टू बीएच के.. यानि दो बेडरूम... एक हॉल और एक किचन तक आ गयी है... मध्यमवर्गीय परिवार कम से कम अब घरों को सपनों तक ही नहीं रहने दे रहे.. बल्कि बदलावों का फायदा उठाकर.. उसे हकीकत में तब्दील कर रहे हैं...