अभी अभी

भगवान है तो शैतान भी है !

काफी दिनों से एक कहानी लिखने की सोच रहा था... हालांकि ये कहानी डरावनी है... लेकिन मैं आपको बता दूं कि ये एक सच्ची घटना पर आधारित है... मेरी आंखों देखी हुई है... करीब 6 साल पहले मुझे भी भूत-प्रेतों या फिर ऐसी किसी भी शक्ति पर यकीन नहीं था... लेकिन इस घटना के बाद मैं इन सारी बातों पर यकीन करता हूं... मेरा मानना है कि हम अगर भगवान में यकीन रखते हैं तो शैतान के वजूद को भी मानना पड़ेगा... कहानी सच्ची घटना पर आधारित है लेकिन कई पात्र और कहानी के कई अंश बिल्कुल काल्पनिक हैं.. इनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से संबंध नहीं है... कहानी का पहला पार्ट दे रहा हूं.. जल्दी ही पार्ट - 2 भी पेश करूंगा....



फोन की घंटी बजते ही मेरी नींद खुली
... सबसे पहले घड़ी पर नज़र पड़ी.. सुबह के सात बज रहे थे... मैंने सोचा इतनी सुबह-सुबह किसने फोन किया... बिना फोन की स्क्रीन देखे ही हरा बटन दबा दिया...
"
हैलो"
उधर से आवाज़ आयी
" सुमेर"
आवाज़ जानी पहचानी लगी
... दूसरी तरफ चाचाजी थे...
मैंने कहा
"चाचाजी प्रणाम"
"
खुश रहो... दिल्ली आ सकते हो क्या"
उनका इतना कहना था कि पूरी नींद कहां छूमंतर हो गयी पता ही नहीं चला
... शरीर की सारी इंद्रियां एकाएक ये संकेत देने लगी... कि कुछ ना कुछ गड़बड़ तो है... फौरन दिमाग में फिल्म चलने लगी कि क्या हो सकता है... कहीं दादी... या फिर दादा... या कोई और.... खैर दिल की बढ़ती धड़कनों को काबू करने की नाकामयाब कोशिश करते हुए मैंने पूछा..
"
चाचाजी... सब ठीक तो है ना "
"
सुमेर... अगर दिल्ली आ सकते हो तो फौरन आ जाओ... बेहद ज़रूरी है "
इतना कहकर चाचाजी ने फोन काट दिया
... दिमाग चक्करघिन्नी की तरह घूम रहा था... समझ नहीं रहा था कि क्या हुआ... फौरन पिताजी को फोन लगाया... काफी देर तक मोबाइल में ट्रिन ट्रिन की घंटी सुनाई देती रही... लेकिन पिताजी ने फोन नहीं उठाया... मम्मी को फोन किया... लेकिन यहां भी फोन नहीं उठा... दिमाग में ना जाने कैसे-कैसे ख्याल रहे थे... फिर मैंने अपनी बड़ी बुआ के बेटे को फोन किया... शुक्र था कि उधर से आवाज़ आयी...
"
हैलो...सुमेर भइया प्रणाम"
"
राजू... घर में सब ठीक है ना..."
"
हां वैसे तो सब ठीक है... गुड़िया दीदी की तबियत थोड़ी सी खराब है... उन्हें लेकर दिल्ली गए हैं"
"
दिल्ली गए हैं ! क्या तबियत ज्यादा खराब है"
"
नहीं.. उनको दौरे पड़ रहे हैं.. शायद दिमाग में कुछ हो गया है"
मैंने राहत की सांस ली
.. चलो बहुत बुरा कुछ भी नहीं हुआ है... लेकिन दिल की धड़कनें इसके बावजूद कम नहीं हुई... गुड़िया की तबियत खराब है... पहले तो कभी इस तरह उसकी तबियत खराब तो नहीं हुई... खैर किसी तरह बॉस को फोन करके हालात समझाएं और दिल्ली जाने वाली अगली ट्रेन पर चढ़ गया.. टीटी को कुछ पैसे देकर एक बर्थ पर आसरा मिल गया... आखिर हैदराबाद से दिल्ली कि इतनी लंबी दूरी जो तय करनी थी... अगले दिन सुबह करीब नौ बजे नई दिल्ली स्टेशन पर उतरा... ऑटो किया... सीधे घर पहुंचा.. रास्ते भर दिमाग में ना जाने कैसे-कैसे ख्याल आते रहे... घर पहुंचा.. देखा गुड़िया अगले कमरे ही बैठी है... फौरन बोला भईया गए... प्रणाम किया... मैं और ज्यादा परेशान.. गुड़िया तो बिल्कुल ठीक-ठाक है... लेकिन घर में एक अजीब सा महौल ज़रूर महसूस हुआ... खैर नाश्ते के बाद चाचाजी से बात की तो सुनकर पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी...
"
कैसी बातें कर रहे हैं चाचाजी.. गुड़िया पर किसी भूत-प्रेत का साया है... आपका दिमाग तो ठीक है... खुद आप एक डॉक्टर हैं... फिर ऐसी बहकी-बहकी और अंधविश्वास की बातें कर रहे हैं..."
"
नहीं... सुमेर... जबतक गुड़िया को देखा ना था... तबतक मेरे शब्द भी यही थे... भाभी या भैया तुम्हे सारी कहानी बता देंगे."
"
क्या... मां और पिताजी भी यहीं पर हैं.."
"
हां वो भी कल ही आएं हैं... गुड़िया के हाथ से एक लौंग लेकर पास में ही एक तांत्रिक के पास गए हैं..आते ही होंगे...तुम्हारी चाची भी उन्हीं के साथ गयीं हैं.."
"
चाचाजी.. ये इक्कीसवीं सदी है... और बाहर वाले कमरे गुड़िया बैठी तो है... एकदम फिट... मुझे तो वो बिल्कुल भी बीमार नज़र आ रही"
"
थोड़ी देर इंतज़ार करो सुमेर.. आंखों से देख लोगे तो.. समझ जाओगे"
चाचाजी के मुंह से ऐसी बातें सुनकर मेरा दिमाग खराब हो रहा था
... मैंने कभी इन सब बातों पर यकीन नहीं किया...कोरी बकवास के सिवा और कुछ भी नहीं लगता था... लेकिन शायद मैं गलत साबित होने वाला था... मेरे जैसा आदमी भी... कुछ ही घंटों बाद ये यकीन करने वाला था कि हां कोई दूसरी शक्ति होती है... कुछ ना कुछ तो है...
घंटी बजी
... दरवाज़ा खोला तो देखा पिताजी... मां और चाची थी... सबके चेहरों पर एक अजीब तरह का डर साफ-साफ नज़र रहा था... सबको प्रणाम किया... आशीर्वाद में वो पुरानी वाली बात नहीं लगी... लग रहा था मानो दुखों का बहुत बड़ा पहाड़ टूट पड़ा था... चाची के हाथों में एक शीशी थी और उसमें पानी नज़र रहा था... चाची ने फिर चाचाजी.. पिताजी और मुझे बुलाया... गुड़िया दूसरे कमरे में गयी थी... जैसे ही कमरे में घुसा... गुड़िया के हाव-भाव देखकर मुझे कुछ अजीब सा लगा... मैंने कहा..
"
गुड़िया... क्या हुआ.."
गुड़िया चुपचाप बैठी रही
... थोड़ी देर तक वो मुझे अजीब नज़रों से घूरती रही... फिर चाचा की तरफ देखा... फिर खड़ी हो गयी.. बोली...
"
दादा.. ये तुमने ठीक नहीं किया... मैंने मना किया था ना... मुझे वहां पर जाना है... मुझे जाने दो... "
कानों पर यकीन नहीं हुआ
... गुड़िया की आवाज़ किसी मर्द जैसी आवाज़ लग रही थी... एक घंटे पहले तो उसकी आवाज़ बिल्कुल ठीक थी.. एकाएक इसे क्या हुआ... तभी चाचाजी ने कहा...
"
सुमेर ज़रा इसके हाथों को पकड़ना... भैया आप भी ज़रा इसे पकड़ लें"
मैंने पापा को मना किया
..
"
अरे मैंने पकड़ा तो है.. आप रहने दीजिए"
मुझे अपनी बाज़ुओं पर यकीन था
... सोचा गुड़िया जैसी दुबली पतली लड़की को तो मैं आसानी से संभाल लूंगा... लेकिन कुछ ही पलों बाद मुझे अपनी ताकत पर शक होने लगा... गुड़िया के शरीर में पता नहीं एकाएक कितनी ताकत गयी कि वो मेरे वश से बाहर होने लगी... खैर तभी पापा ने भी गुड़िया को पकड़ लिया... लेकिन हम दोनों ये महसूस कर सकते थे कि इस वक्त गुड़िया की ताकत हमसे कहीं ज्यादा है... दिमाग एक बार फिर घूम रहा था.. जिन बातों पर मुझे यकीन नहीं था... उस पर यकीन करना पड़ रहा था... लेकिन दिमाग के किसी कोने में अभी भी था कि ये कोई दिमागी बीमारी है... ना कि भूत-प्रेत का साया... खैर उस तांत्रिक के यहां से आए पानी को छिड़कने के बाद गुड़िया एकदम से शांत हो गयी... लेकिन चेहरे में अभी भी वही भाव थे... चाचा कमरे में उसके पास रह गए और हम बाहर निकल गए... पापा ने बताया कि एम्स में टाइम मिल गया है.. डॉक्टर से दिखाना है... अगले तीन दिनों तक यही होता रहा... कई सारे टेस्ट हुए लेकिन सबकी रिपोर्ट नॉर्मल... न्यूरो के डिपार्टमेंट में भी दिखाया गया... लेकिन वहां भी रिपोर्ट्स में कुछ नहीं आया... खैर तय हुआ कि अब वापस गांव चला जाए वहीं कुछ हो सकता है... अगले दिन हमने घर जाने वाली ट्रेन पकड़ ली... रास्ते भर सबकुछ ठीक था.. कुछ भी गड़बड़ नहीं हुई... लेकिन जैसे ही हम घर पहुंचे.. गुड़िया एकाएक बेकाबू हो गयी... मैंने उसे संभालने की कोशिश की लेकिन उसके एक ज़ोरदार थप्पड़ ने दिन में तारे दिखा दिए... खैर किसी तरह चाचाजी ने फिर से वो पानी छिड़का तब जाकर वो शांत हुई... किसी को कुछ भी समझ में नहीं रहा था कि करें तो क्या करें....
"
पापा... हुआ क्या है... मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है..गुड़िया को लगता है कोई जबरदस्त मानसिक बीमारी हो गयी है...."
"
नहीं सुमेर.. अगर ऐसा होता तो सोचो पानी छिड़कते ही वो शांत क्यो जाती... और तुमने अपनी आंखों से देखा... कैसे बेकाबू हो गयी थी... और उसकी आवाज़ भी बदल गयी थी"
"
हां ये तो है... लेकिन अब हम क्या करेंगे"
"
बगल के गांव में फकीर हैं... उनको बुलवाया है.. देखो क्या होता है.."
"
क्या आप सच में यकीन कर रहे हैं कि गुड़िया पर किसी भूत-प्रेत का साया है.."
"
फिलहाल तो यकीन करना पड़ रहा है..." पापा ने कहा...
शाम के करीब
5 बजे वो फकीर आया... लेकिन जैसे ही उसने सीढ़ीयों पर पहला कदम रखा... वैसे ही वो चौंककर पीछे हट गया...
"
शर्मा जी... आज रहने दीजिए... कल मैं फिर आउंगा... " इतना कहते ही वो तेज़ कदमों से चलते हुए चला गया...
किसी को भी समझ नहीं आया कि आखिर फकीर ने ऐसा क्यों किया... खैर किसी तरह रात कटी
...रात भर गुड़िया ने सबको परेशान कर रखा था... सुबह के अभी 6 भी नहीं बजे थे कि बाहर से फकीर की आवाज़ आयी.....
"
शर्मा जी... "
पापा फौरन बाहर गए
...
"
आइए-आइए "
"
बिटिया ने बहुत परेशान किया ना रातभर.. खैर फिक्र मत कीजिए अब सब ठीक हो जाएगा..."


भगवान है तो शैतान भी है ! पार्ट - 2 

5 comments:

  1. alok its awesome brother
    ur writing like a mature writer
    waiting for part two
    pls jayada wait mat karana pls
    good going brother keep it up
    abhishek

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  2. pakka... writing now... jaldi hi 2nd part aa jayega.. thanks a lot...

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  3. Alok sir,plz jaldi dusra part publish karo.

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