सासंदों की सब्सिडी और जनता का शपथ अभियान
यूं तो हमारी आदत है कि हम जनता के साथ ही
रहते हैं... उनकी आवाज़ों को अपना मानते हैं... उनकी हांक में हांक मिलाते हैं...
लेकिन इस बार ज़रा हम सटक गए हैं... थोड़ा सा बिदक गए हैं... मतलब ये कि भाई साहब
भेड़ चाल में शामिल होने पर अब हमें थोड़ा-थोड़ा एतराज़ होने लगा है... दरअसल
मियां कुछ बात यूं हो गयी कि पिछले कुछ दिनों से फेसबुक से लेकर व्हाट्स एप तक..
लोगों ने बात-बात पर शपथ लेनी शुरु कर दी है... हम शपथ लेते हैं कि
ब्ला-ब्ला-ब्ला-ब्ला... और फिर जहां एक बार शपथ लेने की परंपरा शुरु होती है...
उसके पीछे-पीछे जनता टूट पड़ती है... अब मियां उन्हें कौन समझाए कि भाई ज़रा देख
लो... सोच लो... समझ लो... अब देखिए ना... महीने में चार एक्स्ट्रा मेहमान अगर घर
पर आ जाएं और उन्हें खिलाना पिलाना पड़े तो भाई बजट का लाल रंग का बजर घों-घों
करके बजने लगता है... और खुदा ना खास्ता कोई पर्व-त्योहार आ जाए तो करेला ऊपर से
नीम चढ़ा हो जाता है... ऐसा ही कुछ हमारे माननीय सांसदों के साथ हो रहा है...
कहने का मतबल ये है कि पिछले 68 सालों से
एक सिस्टम बना है... अब ये सिस्टम काहे बना.. क्यों बना... इसके पीछे की अपनी
वजहें हैं... लेकिन सिस्टम बना हुआ है... हालांकि ये भी ठीक है कि वक्त के साथ
सिस्टम में थोड़ा बदलाव होना चाहिए... लेकिन सिस्टम अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रहा
है... वैसे तुलना की जाए तो हमारे सांसदों का वेतन उतना नहीं है... जितना दुनिया
के कई देशों में है... लेकिन यहां पर ये भी है कि हमारे सांसदों को जितनी सुविधाएं
(सब्सिडी) मिलती है उतनी और कहीं नहीं मिलती... खैर बात हो रही थी सांसदों के वेतन
की... ब्रिटेन में एक सांसद को बेसिक वेतन के तौर पर करीब 64 हज़ार पाउंड यानि
भारतीय रुपए में कहें तो करीब 63 लाख रुपए मिलते हैं... सिंगापुर में ये रकम करीब
20 हज़ार डॉलर यानि करीब 12 लाख रुपए है... अमेरिका में तो करीब एक करोड़ है...
देश
|
सांसदों का कुल वेतन (रुपए)
|
प्रति
व्यक्ति आय (रुपए)
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भारत
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35 लाख
|
99 हजार
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इटली
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1.11 करोड़
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12 लाख
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जापान
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1.64 करोड़
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1.05 करोड़
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न्यूजीलैंड
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71.58 लाख
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15.51 लाख
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अमेरिका
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1.07 करोड़
|
26.98 लाख
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फ्रांस
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52 लाख
|
14.62 लाख
|
जर्मनी
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73 लाख
|
21.96 लाख
|
आयरलैंड
|
73 लाख
|
22.50 लाख
|
यूके
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65 लाख
|
20.83 लाख
|
ऑस्ट्रेलिया
|
1.19 करोड़
|
39.24 लाख
|
हालांकि मैं यहां पर सांसदों की तनख्वाह
बढ़ाने या फिर उनको मिल रही सब्सिडी को जायज़ ठहराने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कर
रहा... मेरा तो मानना है कि भाई रोज़ का रोना छोड़ो कोई मुकम्मल उपाय कर दो... जैसे
की हमारी नौकरी में है... भाई आपकी सैलरी फिक्स है... फिर आप उसका जिस तरह से
इस्तेमाल करना चाहें कर सकते हैं... घर पर रोज़ लोगों को बुलाइए पार्टी दीजिए.. या
फिर चुपचाप अपना घर चलाइए... लेकिन चूंकि हमारे सांसद ऐसा नहीं कर सकते.. क्योंकि
अगर उनके घर या दफ्तर पर पहुंचा एक भी आदमी हमारी शादियों में फूफाजी/चाचाजी/बाबाजी
की तरह बिना चाय पिए बिदक गया तो समझ लीजिए 5-10 वोट तो उसके गए... इसलिए बेचारे
सांसद को अपने यहां आए हर किसी को चाय-पानी और खाने के लिए पूछना ही पड़ेगा...
अपने क्षेत्र के लोगों को वो कत्तई मना नहीं कर सकता... अब उस बेचारे की भी अपनी
मजबूरी है... आखिर वोट के लिए तो उसे अपनी जनता के बीच भी जाना पड़ेगा... अमूमन
जनता इस बात को याद नहीं रखती की सांसद जी ने सड़क बनवाने का वादा जो किया था वो
अब तक पूरा नहीं हुआ है... लेकिन ये ज़रूर याद रखती है कि सांसद जी के यहां गए थे
तो चाय भी नहीं पिलाया...
वैसे ये बात भी अलग नहीं है कि जैसे ही
कोई सांसद बनता है... अगले पांच साल में उसकी सुख-समृद्धि और संपत्ति में उछाल
शेयर बाज़ार को भी मात दे देता है... और उसके नीचे गिरने का तो सवाल ही नहीं
होता.. यहां पर सूचकांक बस ऊपर ही बढ़ता जाता है... एक साहब ने तो मुझे राय दी की
क्यों नहीं सरकार सांसदों से सारी सुविधाएं छीन लेती है... और उसके वेतन को कॉरपोरेट
कल्चर के हिसाब से फिक्स कर दिया जाए.. और सांसद अपने वेतन के हिसाब से करता रहे
खर्चा... वैसे फिर मेरे दिमाग में ये बात आयी कि भाई फिर तो सांसदों को कॉरपोरेट
कल्चर के हिसाब से योग्यता भी साबित करनी पड़ेगी... मतलब दसवीं फेल होने पर तो
सांसद बनना मुश्किल होगा ना...
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