अभी अभी

शहादत


आज फिर कुछ घरों के चूल्हे चुप हैं...
आज फिर कुछ मांगों के सिंदूर धुल गए हैं...
आज फिर कुछ बापों के कलेजे छलनी हुए हैं...
आज फिर कुछ सहमी निगाहें अपने पापा को देख रही हैं...
सवाल है इन डरी-डरी आंखों में.....
पापा चुप-चाप क्यों सो रहे हैं....
मम्मी की आंखें पथराई सी क्यों हैं...
दादाजी के कंधे इतने उतरे से क्यों हैं...
दादी के आंसू क्यों नहीं रुक रहे...
कुछ लोगों को उधऱ कोने में कहते सुना है...
मेरे पापा अमर हो गए हैं....
मेरे पापा शहीद हो गए हैं...
छोटी बहन मुझसे पूछती है....

भइया... ये शहीद होना क्या होता है... 

©Alok Ranjan

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