अभी अभी

मां के लिए.....


कितनी बार माँ मैंने देखा है तुमको संकोच में,
कब किससे, कहूँ, क्या, कब, कैसे, की सोच में,
अपने ही घर की बैठक में गुमसुम तुम,
परोस रही चाय-पकौड़ी अंग्रेजी मेज पर,
और खाली प्यालों में खोजती हस्ती अपनी,
जो बेजुबान हो गयी है अपने ही देश में

और कितनी ही बार माँ, बचपन में मैं शर्मसार,
सीखाना चाहता था तुमको विदेशी वार्ता-व्यवहार,
तुम्हारी गोद में हँसा रोया, पाया खोया, सब मैंने,
और तुमसे ही अर्थ, धर्म, कर्म, मोह, पथ पाया मैंने,
और तुमको ही ठुकरा आया कहकर पिछड़ी, व्यर्थ,
जो बेजुबान हो गयी है अपने ही देश में

माँ, अब भ्रमणों, वहमों, उम्र, अध्यययन करके है जाना मैंने,
कैसे सालों सौतेली के सामने था सामान्य, असक्षम तुमको माना मैंने,
तुम्हारी लोरियों की ममता, तुम्हारे सरल संवादों का साहित्य,
तुम्हारी आत्मयिता की महक जिसे किया बरसों अनदेखा मैंने,
आ गया हूँ वापिस सुनने, सुनाने तेरी उसी आवाज़ को,
जो बेजुबान हो गयी है, अपने ही देश में

8 comments:

  1. सुंदर भाव ...मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

    ReplyDelete
  2. मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

    ReplyDelete
  3. उम्दा प्रस्तुती /

    ReplyDelete
  4. bahut khoob shuruaat se hi laga meri hi baat chal rahi hai...

    ReplyDelete
  5. समस्त माताओं को सादर नमन

    ReplyDelete
  6. bahut he sundar

    ReplyDelete
  7. आलोक.. आज मैंने अपने एक दोस्त से अचानक बात की.. पता चला कि मदर्स डे से ठीक पहले ही उसकी मां इस दुनिया को अलविदा कह गईं.. सुनकर मेरे तो पैंरों के तले से ज़मीन निकल गई.. वाकई मां की जगह कोई नहीं ले सकता...

    ReplyDelete
  8. ओह.. एक बेटे के लिए इससे बड़ा दुख और कुछ नहीं हो सकता...

    ReplyDelete