वॉयस ऑफ इंडिया द किलर !
एक बार फिर लंबे अरसे बाद बोलने का मन किया है... अपनी भावनाओं और गुस्से को काफी हद तक दबाने की कोशिश की... लेकिन फिर वही बात आ गयी.. बिहारी हूं ना... रहा नहीं जाता... मीडिया सरकार डॉट कॉम पर वॉयस ऑफ इंडिया की खबर देखी... खबर पढ़ कर यकीन मानिए... दुख और गुस्सा एक साथ आया... दुख मेरे जैसे उन सैकड़ों लोगों के लिए जो चुपचाप दर्द सहते हुए.. अपने अरमानों को कुचलते हुए... कुछ अच्छा हो जाने की सोचते हुए... वॉयस ऑफ इंडिया में काम कर रहे हैं... और गुस्सा उस ढोंगी और पाखंडी मालिक के लिए.. जो चैनल में जबरदस्त हंगामे... गाली-गलौज... चैनल में ताला लगाने... और चैनल के ब्लैक आउट होने के बाद... करीब हफ्ते भर तक इसलिए नहीं आया क्योंकि उसे भगवान गणेश की ज्यादा चिंता थी... गणपति को खुश करने के लिए उसके पास लाखों रुपए थे... लेकिन अपने ही कर्मचारियों को दीवाली के दिए जलाने तक के पैसे देने की औकात नहीं थी... जी हां औकात ही कहूंगा... बात सिर्फ पैसे की नहीं होती... जिगरा चाहिए होता है... अरे चार सौ लोगों को संभालने की औकात नहीं थी... तो चैनल खरीदा क्यों... क्यों चार सौ लोगों को झूठे सपने दिखाए.. भ्रम नहीं सिर्फ खबर के टैग को वॉयस ऑफ इंडिया के इस नए मालिक अमित सिन्हा ने सच करके दिखाया... अपने कर्मचारियों को भ्रम में रखा.. और दुनिया भर के लिए खबर बनता रहा... खबर चाहे उसके खिलाफ ही क्यों ना थी... वो बदनाम ही क्यों ना हो रहा हो... भई खबर तो खबर है... बचपन में किसी किताब में कहानी पढ़ी थी.... कहानी का शीर्षक था अखबार में नाम... उसमें एक शख्स गाड़ी के आगे इसलिए कूद जाता है क्योंकि उसे अपना नाम अखबार में देखना होता है... शायद ऐसा ही कुछ अमित सिन्हा ने किया... मैने अपने ब्लॉग पर पहले भी लिखा था.. कि मित्तल बंधु और अमित सिन्हा की आपसी सांठ-गांठ है.. दोनों को करो़ड़ों कमाने थे... इसलिए ये खेल खेला गया... मित्तल बंधु तो इसीलिए कुख्यात भी हैं... आगरा के एक-एक पुलिसवाले के पास मित्तल बंधुओं का पूरा कच्चा चिट्ठा मौजूद है... और मुझे लगता है ऐसा ही कुछ अमित सिन्हा के साथ भी है... लेकिन ये साहब ज़रा पर्दे के पीछे से खेल करने में माहिर लगते हैं.. अरे क्या इस मालिक को अशोक उपाध्याय का चेहरा याद नहीं आता... क्या उसे उस शख्स की याद नहीं आती जिसकी जान उसने ली... हां मैं तो यही कहूंगा कि अमित सिन्हा ने ही अशोक उपाध्याय को मारा है... सोचिए उस रात अशोक जी के दिल और मन में क्या चल रहा होगा... सैलरी नहीं मिल रही... घर को चलाना है... काम करना है... बच्चे की फीस भरनी है... अपनी और अपनी पत्नी की ज़रूरतें पूरी करनी हैं.. दो वक्त की ठीक ढंग से रोटी मिल जाए.. उसके बारे में सोचना है... सोचिए अगर उनका बेटा स्कूल की किसी फरमाईश को अपने पिता से कहता होगा तो... उस पिता के मन पर क्या बीतती होगी... क्या बहाने बनाता होगा वो अपने बच्चे से... कितना बड़ा दर्द पीकर वो बच्चे को समझाता होगा... दर्द जब हद से ज्यादा बढ़ गया तो... अशोक उपाध्याय नाम का एक पिता... एक पति... एक भाई... और एक मां का लाडला बेटा... खत्म हो गया.. अमित सिन्हा के वॉयस ऑफ इंडिया ने.. वॉयस ऑफ अशोक उपाध्याय को किल कर दिया... लेकिन अमित सिन्हा को इससे क्या... मर्सडीज़ गाड़ी में बैठकर... किसी फाइव स्टार होटल के कमरे जैसे घर में रह कर... कोई भला कैसे इस दर्द को समझ पाता... अरे उसके लिए तो बॉलीवुड की हीरोइनों के साथ फोटो शूट करवाने में पांच करोड़ रूपए खर्च करना ज्यादा अहमियत रखता है.. पेज थ्री पर आने के लिए पांच करोड़ खर्च करना ज्यादा ज़रूरी है... सैकड़ों लोग अपने घर में चूल्हा कैसा जला रहे हैं... एक टाइम की रोटी खा रहे हैं.. या फिर व्रत के नाम पर उपवास रख रहे हैं.. उससे अमित सिन्हा को क्या... उन्हें तो अपने बैंक अकाउंट को देखकर बड़ा सूकून मिलता होगा... बाकी लोगों का क्या उन्होंने ठेका ले रखा है... दुनिया जाए भाड़ में... कोई मरे या जिए... उससे उन्हें क्या.. अब बस करता हूं... क्योंकि मुझे हर पल अशोक भैया का चेहरा याद आता है... हर बार चुपचाप उन्हें सोते हुए देखता हूं.. जैसे वो हॉस्पिटल के बेड पर मरने के बाद सोए हुए थे... जैसे-जैसे वो मंज़र याद आ रहा है.. गुस्सा और दुख दोनों ही बढ़ते जा रहे हैं... इसलिए एक बार फिर चुप हो जाता हूं.. लेकिन जाते-जाते फिर वही पुरानी बात.. जबतक चुप हूं चुप हूं... लेकिन जब भी बोलूंगा डंके की चोट पर बोलूंगा... अगले पोस्ट तक के लिए अलविदा...
आपके इस लेख में जो चिढ़ थी वो समझ आती है लेकिन, आपके प्रोफ़ाइल को पढ़कर निराशा हुई।
ReplyDeleteghar mein nahi daane amma chali bhunane
ReplyDeleteaapke profil ko padkar ek baar fir voi ke bare mai sochane per majboor kar diya
ReplyDeleteaapke profil ko padkar ek baar voi ke bare mai sochne per majboor kar diya.
ReplyDeleteakash rai mp.