अभी अभी

क्यों ना बोलें बांबे ?

किसी ने कहा है कि मौन धारण करना ही किसी विवाद से बचने का अच्छा समाधान होता है... इसीलिए अक्सर चुप ही रहता हूं.... लेकिन आज फिर एक खबर ने बोलने पर मजबूर कर दिया... सुबह उठकर किसी न्यूज चैनल को ट्यून किया तो देखा ब्रेकिंग चल रही है... करण जौहर ने माफी मांगी... राज ठाकरे से माफी मांगी... फिल्म से बांबे शब्द हटाया जाएगा... अरे मैं करण जौहर से पूछता हूं कि क्या उनकी गैरत मर गयी है... क्या उन्हें ये लगा कि राज ठाकरे ने फिल्म में बांबे शब्द इस्तेमाल किए जाने पर जो विरोध किया था उससे उनका नुकसान हो जाएगा... अरे कोई करण जौहर को समझाओ की दो टके के नेता राज ठाकरे से लोग डरना छोड़ दें... मराठी मानुष की बात करता है राज ठाकरे.. और उन्हीं मराठी मानुष के कंधे पर रखकर अपने स्वार्थ की बंदूक चलाता है... अरे काहे का मुंबई और काहे का बांबे... जिस शहर को लोगों ने पांच दशकों से भी ज्यादा बांबे कहकर पुकारा उस शहर के लोग क्या इतनी जल्दी उसे भुला देंगे... क्या बांबे उनकी ज़ुबान से उतर जाएगा... अरे राज ठाकरे कभी अपना नाम बदलकर देखें... क्या उनके मां-बाप उनके घरवाले नए नाम को याद रख पाएंगे.. नहीं.. मेरा दावा है कि वो उन्हें तब भी राज कहकर ही बुलाएंगे... अरे इतनी खुरक चढ़ी है राज ठाकरे को तो हाईकोर्ट का नाम क्यों नहीं बदलवा देते... बांबे हाईकोर्ट को करवा दें मुंबई हाईकोर्ट... क्यों नहीं इसके लिए उनकी गली-मोहल्ले की पार्टी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के लोग आंदोलन करते हैं... पार्टी का नाम रखा है महाराष्ट्र नव निर्माण सेना लेकिन काम हैं बंटवारे का... गुंडई का... डराने का... मराठा शान की झूठी तस्वीर पेश करने का... अरे मराठा छत्रप शिवाजी महाराज क्या सिर्फ मराठों के लिए लड़े... अरे वो तो पूरे देश के लिए लड़े... अभी सुबह सीएनएन-आईबीएन पर राज ठाकरे... राजदीप सरदेसाई के सवालों का जवाब दे रहे थें... देखकर और सुनकर बड़ा दुख हुआ कि राज ठाकरे हिंदी में पूछे गए सवालों का जवाब मराठी में दे रहे थे... अरे राज ठाकरे साहब क्या हिंदुस्तान आपका नहीं है... क्या राष्ट्रभाषा हिंदी आपकी भाषा नहीं है... अरे जब आपने ये प्रण कर ही लिया है कि आप हिंदी में बोलेंगे ही नहीं तो जनाब बंटवारे की राजनीति का ये तो सबसे पहला आधार आपने ही रखा है... आपने ही अपने आपको सबसे अलग कर लिया है... अरे साहब भाषा और क्षेत्र किसी की निजी संपत्ति नहीं होते... और आपने जो हिंदी नहीं बोलने का प्रण लेकर अपने मराठी भाईयों को जो कुछ भी दिखाने की कोशिश की है... वो सिर्फ और सिर्फ आपकी नीचता है... आपका अपना स्वार्थ है... मैं पूछता हूं क्या किया आपने अपने मराठी भाईयों के लिए... मुंबई पर हमला होता है तब तो आप और आपके चंपू नज़र नहीं आते... कहां थे आप उस वक्त... क्या आतंकवादियों ने ये देखकर लोगों को मारा था कि वो मराठी हैं कि बिहारी है कि उत्तर भारतीय हैं... राज ठाकरे साहब ना तो मुंबई आपकी है... ना महाराष्ट्र आपका है और ना ही ये देश आपका है... मुंबई... महाराष्ट्र... हिंदुस्तान हमारा है... और आप जैसे दो टके के नेताओं में इतनी ताकत नहीं कि वो हिंदुस्तानियों को क्षेत्रवाद के नाम पर बांट सके... सुधर जाइए नहीं तो किसी दिन ऐसा ना हो जाए कि आपको ही महाराष्ट्र तो क्या हिंदुस्तान से ही बाहर खदेड़ दिया जाए... चलते-चलते मैं ये भी कह दूं... कि ये ना समझा जाए कि मैं बिहारी हूं तभी राज ठाकरे के खिलाफ इतना बोल रहा हूं... मैं हिंदुस्तानी हूं... हिंदुस्तान हमारा घर है.. और मैं दावे के साथ कहता हूं कि अगर किसी ने हमारे घर को बांटने की कोशिश की तो... यहां रहने वाले उसे उसका जवाब देंगे.. तब वो ये नहीं देखेंगे कि वो मराठी हैं... गुजराती हैं... बिहारी हैं या फिर पंजाबी हैं...

वैसे कहना तो बहुत कुछ था.. लेकिन अपनी मर्यादाओं का ख्याल है मुझे... इसलिए एक बार फिर चुप हो जाता हूं... लेकिन याद रखिएगा.. जब भी बोलने का मौका आएगा चुप नहीं रहूंगा...


14 comments:

  1. राजठाकरे की औकात जितनी है नहीं उससे ज्यादा मीडिया न बना दी है। छद्म लोगों की जमात का नेता है जिनकी खुद की रीढ़ की हड्डी नहीं है।

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  2. तेरा नाम मै अभी राज ठाकरे के पास भेजता हूँ... वैसे तेरे ब्लॉग सच हि पढने के काबील है ही साथ में प्रिंटआऊट निकालकर रखने के काबील भी है....
    - गिरीश अवघडे

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  3. वैसे अलोक भाई आपने लिखा तो अच्छा है. मगर जरा आप बेंगलूरू को बैंलगोर और चेन्नई को मद्रास तथी कोलकता को कलकत्ता बोल के दिखाए तो... पिछले हिस्से पर डंडे पड जाएंगे... जिस शहर का नाम उसकी ग्रामदेवता ( मुंबादेवी ) के नाम पे हो, उसे मुंबई कहने मे किसी का क्या जाता है. अगर कोई जानबुझकर बांबे हि बोलेगा तो किसी ना किसी को तो बोलना ही पडेगा. भले ही वह मराठी राजनीती हो, तो आप ही बताए, आपने अभीतक तेलूगू देशम का आंध्रबिड्डा या द्रमुक का महानाडू के बारे में कुछ लिखा है. आप हिम्मत नहीं करोगे क्योंकी मराठी ही एक ऐसी जमात है जो डेमोक्रेट थी अबतक जो सबकुछ सुनकर अपना निर्णय लेती थी. इसका मतलब यह नहीं ( जैसा कि रासूबोध बोल रहे है ) की, उसे रीढ कि हड्डी नहीं. वह मराठों की रीढ हड्डीही थी जिसकी वजह से हमारा देश आज अपने बुते पें खडा है... कितने नाम गिनाऊँ ? चलो तो अब मराठी जनता बोलने लगी तो मिर्ची लग गयी ना.... लेकीन भैया, मुंबई में रहना है तो मुंबई ही बोलना पडेगा....

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  4. @ Anonymous भाई
    आपका कहना भी आपकी जगह सही है... लेकिन भाई मेरे एक बात तो बताइए क्या आप अपने बच्चे का नाम हर बार बदल देते हैं... क्या आपने उसके पैदा होते ही जो नाम रखा.. उसे बीस--या तीस साल बाद बदल देंगे... मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि मुंबई को बांबे कहने या बांबे को मुंबई कहने से ना तो कुछ बनने वाला है और ना ही बिगड़ने वाला है... अरे करना है तो मराठी मानुष के लिए ही करो... लेकिन करो तो यार... सिर्फ बोलना और बिना सिर पैर के मुद्दों पर आंदोलन करना.. विवाद पैदा करना... कहां तक जायज़ है... राज ठाकरे हो या बाल ठाकरे... सिर्फ अपने घर को चमका कर रखते हैं... बांबे हो या मुंबई.. जाए भांड़ में... मेरे लिखने का सिर्फ यही मतलब है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देंगे... बांबे शब्द से ज्यादा नफरत है तो राज ठाकरे के बच्चे जिस स्कूल में पढ़ते हैं उसका नाम बांबे स्कॉटिश है... उसे बदल दें... बांबे हाईकोर्ट का नाम बदल दें... लेकिन क्या नाम बदलने... बांबे को मुंबई कहने से कुछ होगा...

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  5. शेक्सपिअर ने कहा है, नाम में क्या रखा है.. सही है.. परंतु न तो मै अपने बच्चे का नाम घडी-घडी बदलूंगा ना तो उसे दुसरा नाम लेने पर बाध्य करूंगा... मगर बाहर से आया हुवा कोई उसके नाम का अपभ्रंश करेगा तो मेरे नजर मे आते हि मै उसे सही शब्द बताकर उसे कहूँगा की भाई मेरे आप गलत उच्चारण कर रह हो. अगर उसके बाद भी वह वही उच्चारण लेकर चलेगा तो वह ताडन का अधिकारी रहेगा ही.
    इतिहास साक्षी है कि, जब अंग्रेजों को पोर्तुगीजों से उंदेरी-खांदेरी व्दिपसमूह जो आज मुंबई कहलाता है मिला था तो उसे ब्रिटीशोंने मुंबादेवी के नाम पर मुंबई नाम सेही विकसित किया था ( संदर्भ- १८६८ का ब्रिटीश गॅझेटीयर ) लेकीन कुछ अंग्रेजों को मुंबई का उच्चारण करने में दिक्कत होती थी इसिलिए उन्होने उसका उच्चारण बॉम्बे करना शुरू किया. इसकी पुष्टी के लिए आप कुलाबा मुंबई के पुलीस हेडक्वार्टर्स ( काला-घोडा ) के सामने वाले चबुतरे पर जो उसी साल बना है उसपर देख सकते हो. उसपर स्पेलिंग लिखा है MUMBAI. अब आप ही बतावो इसका उच्चारण आप कैसे करोगे ?
    इसमे नाम बदलने वाली बात तो है नहीं. बात है तो सही नाम याद दिलाने की... तरीका गलत है. मै मानता हूँ... दुसरों शहरों के बारे मे भी यहीं हुवा जो अब ठिक किया जा रहा है.... मुझे लगता है जो गलत नहीं है....
    केवल हमारे यहाँ ही नहीं,मिसाल के तौर पे - बर्मा जो अंग्रेजों के व्दारा दिया हुवा नाम था जो आज मियांनमार हो गया...

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  6. आलोक जी मैंने आपका आलेख पढ़ा । एक-एक शब्द पढ़ा । अच्छा लगा । इसके बाद बिना नाम के उस शख्स की प्रतिक्रिया भी देखी, जिसे मुंबई से प्यार है, बांबे से नहीं । इस प्रतिक्रिया पर आपकी प्रतिक्रिया भी लाजवाब है ।
    राज ठाकरे या बाल ठाकरे को तो मात्र राजनीति करना है, वह भी बांबे (मुंबई) में । इसलिए मानुष में जहर तो भरना ही है । पहले हिन्दुत्व की बात करते थे, अब मुंबई के मानुष की बात छेड़ कर बांबे के मठाधीस बनना चाह रहे हैं।
    एक बात सही है कि नाम में क्या रखा है, लेकिन पहचान उसी से होती है। यहां बात नाम की नहीं है, यहां देश को बांटने वाले उन शैतान नेताओं की है, जो कुरसी के लिए कुछ भी कर सकते हैं । बना नाम के जिस शख्स ने प्रतिक्रिया दी है, मैं उसे भी सलाह देता हूं कि पहले अपना नाम रख ले,फिर बांबे और मुंबई के अंतर को समझाए । बेहतर यही होगा कि अंग्रेज ने जिस नाम को रखा, उसे भूल जाएं और बांबे को ही याद रखें ।

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  7. आलोक बाबु
    फिर से आपकी बेबाक लेखनी को पढने का मौका मिला |
    बहुत ही सही मुद्दे पे बिल्कुल सटीक चोट किया है आपने |
    आपके तेवर प्रसंस्नीय ही नहीं अनुकरणीय भी हैं |

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  8. नाम छिपाकर बात करने की फितरन नहीं है साहब। रही बात राजठाकरे की और उसकी ओछी राजनीति की तो उसका विरोध डंके की चोट पर होना चाहिए। राजठाकरे नेता नहीं बीमारी का नाम है। ऐसी बेनाम बीमारी है तमाम लोगों के दिमाग को खोखला कर चुकी है। मुंबई को बंबई कहना कोई ऐसी बड़ी बात नहीं जिसपर इतनी गाली गलौज की जाए या लोगों को डराया धमकाया जाए। सच यही है कि राजठाकरे राजनीति का ऐसा मवाद बन चुका है जिसे सियासत के जिस्म से अलग करने की जरुरत है। वरना नामों की लड़ाई में तमाम बेनामी अपने नाम पर घुंघट डालकर राजठाकरे का जहर फैलाते दिखेंगे

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  9. Well said sir...this is not a question of Mumbai or Bombay...rather it is a question of forceful act of Raj Thackeray and his supporters. Raj's intention might be good but his conduct in recent past is not trustworthy. People of India do not mind calling Bombay as Mumbai or even Madras as Chennai..but there must not be a show of terrorism for forceful persuation what Raj Thackeray is trying to do. Even in his interviwe with Times Now he has shown complete incivility while giving answer in Marathi, when he knows English and Hindi well.This is rigidity is just maligning the name of Maharashtra and Mumbai...which was once the only cosmopolitan of India.

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  10. पढ़ के अछा लगा की कोई तो एक ऐसा पत्रकार है जिसको सच बोलने की हिम्मत है, यह मराठी मानुस की बात करते है मछली पकड़ने वाले मछुवारे जो की साडी को भी धोती की तरह पहनते है उत्तर भारतीय की वजह से कपडे पहनना सिख गए, और अब बड़ी बड़ी बात करते है, अगर राज को अपने मराठा का इतना ही चस्का लगा है तो अपने बेटी और बेटे को मराठी मुनिसिपल स्कूल मैं क्योँ नहीं पढाता अरे फीस हम दे देंगे, दो टेक का नेता " कसा कए " कह के लोगो को बेवकूफ बना रहा है जिसके अपने घर मैं नहीं बनती ( राज & उद्धव ) वोः पुरा मराठा क्या जोडेंगे, चुनरी लहंगा वालो की पार्टी ( कहना :- बाल ठाकरे ) मतलब जानते है :- छक्को की पार्टी हा हा हा हा

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  11. I really Respect Aloks feeling, our forfather take Independence for what ? for this, absolutly not they think that in comming decade INDIA will make a new milestone in each and every field ( whatever they are and we are also doing the same ), and Raj Thankery Type Peolple make a partition in his own home, he dont know that we all Indians are brother and sisters, u know If u kill one American it would be an issue for each and every American and in India if you are laying on road no body go and give a right hand for support,just remember 9/11 for Twins tawer America Distroys all AFGANISTAAN and Raaj i really feel shame that we have a leader like this just compare this person RAHUL GANDHI u know the diff.

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  12. भाई अलोक जी ये जो राज और बाल ठाकरे है न ये दोनों ही बहुत ही शातिर किसम के इन्सान है ये अपने ( महाराष्ट्र ) परदेश के उन लोगो का हमेशा ध्यान बटा के रखते है देश का सबसे बड़ा आतंक वादी दाउद् इसी शहर में पला इन की नाक के निचे से वो निकल भागा लेकिन ये कुछ नहीं कर पाए महाराष्ट्र में सब से जादा किसान आत्म हत्या कर रहे है क्या वो मराठी नहीं है उन का दुःख दर्द इने नहीं सुनाई दिखाई देता उस के लिए तो ये आन्दोलन नहीं करते जब कोई गुंडा बिजनेस मेन या फिल्म वालो को धमकी देते है तो ये आन्दोलन नहीं करते ये तो सॉफ्ट टारगेट खोजते है और अपने परदेश के लोगो का धयान बटा के राजनिति करते है क्या उतर भारतीयों के चले जाने से महाराष्ट्र में किसान आत्म हत्या नहीं करेंगे जिस फिल्म को लेकर इनो ने इतना बवाल किया यदि ये किसानो के लिए लड़ते तो पूरा परदेस उन को सर आखो पर बेठा लेता और देश में भी प्रशंसा के पात्र बन जाते जिस तरह से कई निर्माता वो ने माफिया डॉन के डर से देश छोड़ दिया ये ही हाल रहा तो फिल्म वाले भी ये शहर छोड़ देंगे उस समय ये ही मराठ मानुस इनेह कोसेगा देर सवेर ये होगा ही क्यों की हर आदमी करन जोहर या अमिताभ बच्चन नहीं है जो माफ़ी मांग लेगा एक समय आयेगा जब लोग रोज रोज की चिक चिक से अछा घर ( परदेश )बदलना ही बेहतर समजेंगे

    --
    धरमेंदर यादव

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  13. Hi Alok Ranjan ji. Thanks for writing such a soul stirring blog. I alwasy raise the question who the hell is Raj Thackery? I say he is a self styled crouching tiger surrounded by the street dogs.He can never comes out from his den openly just because he is a temid person. I am a chaste Bihari. I know my men. They are well educated, learned, scholar and rule the Bambay offices.I only know-- Ek Bihari, Sab par Bhari--
    Raj Thackery agar Chand par bhi naukri ke vacancy aai to sabse pahle Bihari hi jayenge, tum to sirf Bombay ki baat karte ho.
    Thanks Alok ji for writing such a gr8 blog

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  14. बेबाक लेखनी हेतु साधुवाद...

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