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एक चैनल की मौत


काफी दिनों से मैं चुप था... कुछ नौकरी की व्यस्तता तो कुछ परिवार की.. लेकिन आज जब एक मौत देखी तो चुप ना रहा गया... मौत वॉयस ऑफ इंडिया न्यूज चैनल की... चैनल जब खुला था बेहद शोर था... आज जब मर भी रहा है तो उसी शोर के बीच... सवाल ये नहीं है कि दो लोगों की आपसी लड़ाई में वॉयस ऑफ इंडिया की मौत हो गयी.. सवाल ये है कि इस पूरे वाकये के बाद टीवी जर्नालिज्म की जो किरकिरी हुई है.. उसकी भरपाई कौन करेगा... पांच सौ लोग जो बेरोज़गार हुए हैं उनकी रोज़ी रोटी कैसे चलेगी... जो लोग अपना घर छोड़कर इस अपनी कही जाने वाली परायी दिल्ली में आए वो अब किधर जाएंगे... अमित सिन्हा और मधुर मित्तल के अकाउंट में तो पैसे हैं उन्हें अपनी ईएमआई भरने के लिए सैलेरी का इंतज़ार नहीं करना पड़ता... चैनल नहीं चला तो कोई और धंधा सही... लेकिन कोई ये तो बताए की उन लोगों का क्या होगा जो सिन्हा और मित्तल के मज़ाक का शिकार हुए.. जी हां हम तो इसे मज़ाक ही कहेंगे.. मज़ाक पांच सौ लोगों की ज़िंदगी और उनके सपनों के साथ खिलवाड़ करने का... बेचारे उन त्रिवेणी मीडिया इंस्टीट्यूट के बच्चों के सपनों का क्या होगा जो देखते ही बिखर गए... कहां जाएंगे वो... पत्रकारिता की नई खेप है ये जो लाखों रूपए लेकर तैयार की गयी... लेकिन अब उनके सामने अंधेरे के सिवा कुछ भी नहीं है... अमित सिन्हा कहते हैं कि उन्हें मधुर मित्तल ने धोखा दिया.. इधर मधुर मित्तल राग अलाप रहे हैं कि धोखा तो उन्हें अमित सिन्हा ने दिया है... लेकिन मैं कहता हूं इन दोनों ने ही मिलकर सबको धोखा दिया है... मुझे तो लगता है कि दोनों के बीच नूरा कुश्ती चल रही थी... जो आज खत्म हो गयी... चैनल भी बंद हो गया.. बिना किसी ज़ोरदार हंगामे के सबकुछ निपट भी गया... मधुर मित्तल के खिलाफ 300 केस चल ही रहे हैं 301 वां और सही... उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला... और जिनकी सेहत पर असर पड़ने वाला है उनकी इतनी औकात नहीं वो कुछ कर भी सके... दूसरों के हक की आवाज़ उठाने वाला पत्रकार आज खुद की आवाज़ नहीं उठा सकता.. वो खामोश है... चुप है.. दर्द को अपने अंदर ही अंदर पी रहा है... जो वरिष्ठ हैं उनका करियर तो आखिरी ढलान पर है लेकिन ज़रा सोचिए उनका क्या जो पिछले 5-6 साल से इस फील्ड में हैं.. नए लोगों के पास तो उम्र भी है और फील्ड बदलने का मौका भी.. लेकिन इनका क्या करें.. ये तो कहीं जा भी नहीं सकते... मशरूम की तरह उगते चैनलों ने तालाब में एक नहीं दर्जनों सड़ी मछलियां पैदा कर दी हैं... कहावत तो यही है कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है... यहां तो ना जाने कितनी मछलियां तालाब में मौजूद हैं और कितनी गोते लगाने की तैयारी में... सूचना और प्रसारण मंत्रालय भी कम नहीं है... और हो भी क्यों ना उसे तो लाइसेंस बेचने हैं अपना धंधा करना है.. चैनल चले या ना चले इससे कोई मतलब नहीं है... क्या कोई ऐसा सिस्टम नहीं बन सकता जो चैनलों की इस तरह की मनमानी करने वालों पर लगाम लगा सके... मैं यहां पर बता सिर्फ इसकी नहीं कर रहा कि चैनल पर क्या दिखाया जान चाहिए और क्या नहीं... बल्कि चैनल को जिस तरह चलाया जा रहा है... जब मर्जी आए लोगों को भर्ती कर लिया और जब मर्जी आए लोगों को निकाल दिया... अरे भई जब औकात नहीं है लोगों को रखने की तो भर्ती क्यों करते हो.. बाद में हवाला दिया जाता है कि फलाने का आउटपुट ठीक नहीं आ रहा था इसे लिए उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया... मैं पूछता हूं जब उनकी भर्ती हो रही थी तब आपने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी.. गलती तो आपकी है कि इंटरव्यू लेकर आपने उसे नौकरी दी... खैर मेरे इतना कुछ कहने का मतलब ये है कि कुछ ना कुछ तो होना चाहिए ताकि मीडिया का गलत इस्तेमाल होने से बचे... अपने फायदे और पावर के लिए जो टूंटपूजिए लोग चैनल खोल लेते हैं उनपर बैन लगा देना चाहिए.. नहीं तो जिस तरह वॉयस ऑफ इंडिया की मौत हुई है... वैसी मौत आम हो जाएगी...

8 comments:

  1. आलोक बाबु,
    आपके आलेख और ब्लॉग की जानकारी भडास से मिली |
    यहाँ आने के बाद दो बातें अच्छी लगी एक आपका बेबाकीपन और दूसरा "मैं तो बड़े ही गर्व से कहता हूं कि मैं बिहारी हूं... यही मेरी पहचान है." आपकी सोच अनुकरणीय है, क्षेत्रवाद में मैं विश्वास नहीं करता परन्तु बिहारी हूँ इसे डंके की चोट पर भी कहने से गुरेज नहीं करता |
    एक मीडिया कर्मी होकर उसके उसी की गलतियों को उजागर करना.....ये माद्दे की बात होती है | अच्छा लगा आपको पढ़ना, आता रहूंगा |

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  2. शुक्रिया.. आगे भी आपकी हौसलाआफज़ाई चाहता रहूंगा..

    धन्यवाद

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  3. i don't know who u r...just somehow landed in ur articles and eventually blog....but u write well..and meaningful too- which is more important!
    rgds,
    payal

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  4. बेहतरीन सर...वायस आफ इंडिया की मौत का इससे अच्छा विश्लेषण नहीं हो सकता। ये एक चैनल की मौत नहीं है, ये लालच, धोखाधड़ी,दूसरों को बेवकूफ बनाने और बेरोजगारों के खून पीने की जिंदा मिसाल है। ये हमारे पूंजीवादी व्यवस्था में काले धन के अजगरों की बेइंतहा भूख का सबूत है जिसमें न जाने कितने नौजवान अपने सपनों को कत्ल होते देखते हैं। हमारे यहां कोई सिस्टम नहीं जो इन पर लगाम लगा सके। क्योंकि हम कुछेक सौ पत्रकारों का कोई वोट बैंक नहीं है-हम सिर्फ इस गफलत में जीते हैं कि हम ओपिनियन मेकर हैं जबकि असलियत में ये लफ्फाजी के सिवा कुछ नहीं।

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  5. चूंकि यह एक प्रक्षेत्र विशिष्ट आलेख है, अतः मेरी अनभिज्ञता क्षम्य है. अस्तु, बधाई हो...एक समीचीन मुद्दे पर विचारों को सार्वजनिक पटल पर प्रस्फुटित करने हेतु....

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  6. aalok ji usi khaip ka hissa hun jiska zikra aapne kiya field kaise badal dun? maa baap ke faisle ke khilaaf jake field chuni thi ab unse kya kahu? roz tv par dekhkar khush hote the ki beta anchor ban gaya hai ab unse kya kahu ki maa paa ab dikhayi nahi dunga kyonki channel band ho gaya hai .....kaise kah du? ...telent gaya tel lene aap bhale hi dhakkan ho apki jugaad hai to aapke paas noukri hai ...channel ke band hone ke liye jitne mittal aur sinha zimmedar hai utni hi vo chamchennuma gandi machliya bhi jinhone sirf apni swarthsidhi ke liye channel ko mazak bana diya.. logo ki awaaz banne wale patrkaron ki khud ki awaaz aaj kund pad gayi hai loktantra ka choutha stambh hone ka dam bharne wala ye stambh aaj khud khokhla ho chuka sad chuka hai jiska jitna bada kaala dhandha hai vo utne bade level pe channel le aata hai..is firaak me ki media ki aad me vo apne galat kaarname chupa lega ministry is baat ki jaanch kyon nahi karti ki channel lane wale ka udeshya kya hai gair patrkaar kism ke log chanel laenge to aisa hi hoga ye to baangi bhar hai.. ye bada jahaz thaa doob gaya to shor bhi hua kai chotte motte chanel to na jane kitni baar khul aur band ho chuke hai ...lekin koi awwaz nahi uthti ...jet ne karmchariyon ko nikala to pura media muhim me jut gaya aakhir un sab ki noukri bahal ho gayi lekin apne logo k liye kya? kuch nahi ... berozgaar hone ka gam hai isliye kafi kuch kah gaya bahut kuch aur kahna chahata hu lekin kabhi baad me kahunga is jaar vyavstha me chup bethen logo se yahi kahna chaunga ...ho gayi hai peer parvat si pighalni chaiye ab is himalya se koi ganga nikalni chahiye mere sine me nahi to tere sine me sahi ho kahi bhi par ye aag jalni chahiye

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  7. @anonymus तुमने जो कुछ भी लिखा है बिल्कुल सही लिखा है... तुम कौन हो मैं ये नहीं जानता लेकिन अपने आप को तुम्हारे दुख के बेहद करीब पाता हूं... उपरवाले पर भरोसा रखो... वहां पर आवाज़ ज़रूर सुनी जाएगी.. देर है पर अंधेर नहीं...

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  8. हां, आलोक बाबू...आपने बिल्कुल सही लिखा है। इसे चैनल की मौत ही कहेंगे, जिसने कई लोगों को ज़िंदा दफ़न कर दिया। ऊपरवाले....? इतना भी नहीं सोचते कि जिन उम्मीदों के साथ उनके साथी सबकुछ छोड़कर उनका साथ निभाते हैं, उन्हें ही सड़क पर लाकर पटक दिया। चिंता की बात ये है कि जो मीडिया दूसरों की आवाज़ बनने का दावा करता है, उसी के लोगों की आवाज़ सुननेवाला दूर-दूर तक कोई नहीं है। अब तो ये लाइनें भी बेमानी लगती है...जिसका कोई नहीं ,उसका ख़ुदा है यारो...बहुत अच्छा लिखा...ब्लॉग पर दस्तक देता रहूंगा...बधाई

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