बलूचिस्तान पर इतना बवाल क्यों ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऑपरेशन बलूचिस्तान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से एक ऐसी बात कही.. जिसे आज से पहले भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने नहीं कहा... उन्होंने भाषण में PoK और गिलगित के साथ बलूचिस्तान का नाम लिया.. विरोधी इसे गलत ठहरा रहे हैं... जबकि बलूचिस्तान के लोग इसका स्वागत कर रहे हैं... मोदी के बयान की वजह से बलूच समस्या एक बार फिर दुनिया के सामने आ गयी है... प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इन बातों ने अब नयी बहस छेड़ दी है.. बहस इस बात की आखिर उन्होंने अपने भाषण में बलूचिस्तान और गिलगित का नाम क्यों लिया.. लेकिन इसका एक पक्ष ये भी है कि... उनकी इन बातों के बाद बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे बलूच लोगों ने उनके बयान का स्वागत किया है...
भारत क्यों पड़ा बलूचिस्तान विवाद में ?
आखिर बलूचिस्तान और पाकिस्तान के इस विवाद के बीच में आने की ज़रूरत भारत को क्यों पड़ी.. ये बताने से पहले आपको ये समझना पड़ेगा कि पाकिस्तान की बनावट क्या है और वहां बलूचिस्तान क्यों विवाद की वजह बना है... पाकिस्तान के चार मुख्य प्रांत हैं... पंजाब.. सिंध... खैबर पख्तुनवा और बलूचिस्तान... इसके अलावा फाटा का इलाका है.. जिसका प्रशासन सीधे पाकिस्तान की केंद्र सरकार के अधीन है... इसके अलावा गिलगित और बालटिस्तान का इलाका है... जिन्हें स्वायत्त प्रदेश कहा जाता है... बलूचिस्तान पाकिस्तान का पश्चिमी प्रांत है जिसकी राजधानी क्वेटा है... इसकी सीमा एक ओर ईरान से लगती है.. दूसरी ओर अफगानिस्तान से लगती है.. और तीसरी ओर पाकिस्तान से लगती है...
अब सवाल ये है कि आखिर बलूचिस्तान को लेकर इतना विवाद है क्यों... क्यों पाकिस्तान की सरकार और पाकिस्तानी सेना पर बलूचिस्तान को लेकर बड़े आरोप लगते रहते हैं... और क्यों बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान से आज़ाद होना चाहते हैं... पहले आपको बताते हैं कि पाकिस्तान के लिए बलूचिस्तान इतना अहम क्यों है... दरअसल बलूचिस्तान में यूरेनियम,पेट्रोल,प्राकृतिक गैस,तांबा और कई अन्य धातुओं के भंडार हैं... पाकिस्तान की कुल प्राकृतिक गैस का एक तिहाई यहीं से निकलता है... यही नहीं अरब सागर के किनारे होने की वजह से बलूचिस्तान सामरिक तौर पर भी पाकिस्तान के लिए बेहद अहम है... कतर,ईरान या तुर्कमेनिस्तान से कोई भी गैस या तेल की पाइपलाइन गुजरेगी तो उसे बलूचिस्तान से होकर ही जाना होगा
बलूचिस्तान में पाकिस्तान और चीन का गठबंधन
पाकिस्तान. चीन की मदद से बलूचिस्तान में कई बड़े प्रोजेक्ट्स चला रहा है... जिससे पाकिस्तान और चीन के खज़ाने तो भर रहे हैं.. लेकिन बलूचिस्तान के लोगों को कुछ भी नहीं मिल रहा...
वक्त के साथ बलोच अपने हक के के लिए आवाज़ उठाते रहे... लेकिन पाकिस्तानी सेना हर बार उन्हें अपनी ताकत के दम पर कुचलती आ रही है... हर बीते वक्त के साथ पाकिस्तान में सरकारें बदलती रहीं... अगर कुछ नहीं बदला तो वो था बलूचिस्तान के लिए उसका रवैया... इस बार जब नवाज़ शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने.. तब बलूच लोगों को एक उम्मीद सी जगी.. लेकिन उनकी ये उम्मीद भी झूठी निकली...
11 अगस्त 1947 को ही बलूचिस्तान आज़ाद हुआ... 1948 में पाकिस्तान ने जबरन बलूचिस्तान पर कब्ज़ा किया.. .तब से लेकर आज तक उसने अपने आप को कभी भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं माना... और यही बात पाकिस्तान को नागवार गुज़रती है.. जिसका खामियाज़ा बलूची लोग.. पाकिस्तानी सेना के ज़ुल्मों के ज़रिए भुगतते हैं... पाकिस्तान के इन जुल्मों सितम के खिलाफ आज भी लड़ाई जारी है... और यही वजह है कि बलूचिस्तान पर पाकिस्तान का ज़ुल्म कम होने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है... और इसकी शुरुआत हुई 1948 में जब उसने अपनी सैन्य ताकत के दम पर बलूचिस्तान पर कब्ज़ा किया...
बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना का दमन
उसके बाद 1958, 1962 और 1973 में पाकिस्तान ने बड़ा सैन्य अभियान चलाया.. ताकि विद्रोहियों को दबाया जा सके, 1973 के सैन्य अभियान में पाकिस्तानी सेना के करीब 400 जवानों और करीब 8 हजार बलूच लड़ाकों की मौत हुई, 2004 से अब तक हुए पाकिस्तानी मिलिट्री ऑपरेशनों में बलूचिस्तान के करीब 19,000 लोग मारे जा चुके हैं, पाकिस्तान लगातार लोकतांत्रिक बलूच नेताओं की हत्या और कट्टरपंथियों की आर्थिक मदद करता आ रहा है.. किसी भी बलूच को सेना और सरकारी नौकरियों ने नहीं आने दिया जाता... पाकिस्तान सेना पर बलूच महिलाओं के शोषण के आरोप भी लगातार लगते आ रहे हैं
2005 में बलूचिस्तानी नेताओं नवाब अकबर खां बुग्ती और मीर बालच मर्री ने पाकिस्तान सरकार के सामने 15 सूत्रीय एजेंडा रखा. एजेंडे में बलूच प्रांत के लिए ज्यादा अधिकारों की मांग की गई. लेकिन मांगों के बदले अगस्त 2006 में पाकिस्तानी सेना ने बुग्ती को मार गिराया... बुग्ती पर पाक के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर हमले का आरोप लगाया गया. नतीजा ये हुआ.. कि पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह की चिंगारियां भड़कती रहीं... बलूच विद्रोहियों की मांग है कि पाकिस्तान बलूचिस्तान को स्वतंत्र देश घोषित करे... पाकिस्तानी सेना के अभियानों को रोका जाए... प्राकृतिक गैस और तेल भंडारों से होने वाली कमाई में बलूचिस्तान को हिस्सा दिया जाए... साथ ही कमाई का कुछ हिस्सा इलाके के विकास पर खर्च किया जाए..
बलूचिस्तान में भारत की दखल का आरोप
बलूचिस्तान के विद्रोह में पाकिस्तान भारत का हाथ बताता है... जबकि भारत हमेशा से कहता आ रहा है कि ये पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है... इस पर विवाद 2009 में ज्यादा बढ़ा.. जब इजिप्ट के शर्म अल शेख में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी की मुलाकात हुई... भारत और पाकिस्तान का जो साझा बयान जारी किया गया.. उस पर गिलानी ने कहा था कि इस बयान में पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में भारत की दखअंदाज़ी का ज़िक्र किया है.. जिसके बाद भारत में विवाद पैदा हुआ.. और मनमोहन सिंह को संसद में इस पर सफाई देनी पड़ी..
बलूचिस्तान पर भारत का रूख सिर्फ इतना है कि पाकिस्तान को पहले अपने घर में मचे घमासान को संभालना चाहिए.. ना कि उसे भारत के अभिन्न अंग कश्मीर की चिंता करनी चाहिए...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से एक ऐसी बात कही.. जिसे आज से पहले भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने नहीं कहा... उन्होंने भाषण में PoK और गिलगित के साथ बलूचिस्तान का नाम लिया.. विरोधी इसे गलत ठहरा रहे हैं... जबकि बलूचिस्तान के लोग इसका स्वागत कर रहे हैं... मोदी के बयान की वजह से बलूच समस्या एक बार फिर दुनिया के सामने आ गयी है... प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इन बातों ने अब नयी बहस छेड़ दी है.. बहस इस बात की आखिर उन्होंने अपने भाषण में बलूचिस्तान और गिलगित का नाम क्यों लिया.. लेकिन इसका एक पक्ष ये भी है कि... उनकी इन बातों के बाद बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे बलूच लोगों ने उनके बयान का स्वागत किया है...
भारत क्यों पड़ा बलूचिस्तान विवाद में ?
आखिर बलूचिस्तान और पाकिस्तान के इस विवाद के बीच में आने की ज़रूरत भारत को क्यों पड़ी.. ये बताने से पहले आपको ये समझना पड़ेगा कि पाकिस्तान की बनावट क्या है और वहां बलूचिस्तान क्यों विवाद की वजह बना है... पाकिस्तान के चार मुख्य प्रांत हैं... पंजाब.. सिंध... खैबर पख्तुनवा और बलूचिस्तान... इसके अलावा फाटा का इलाका है.. जिसका प्रशासन सीधे पाकिस्तान की केंद्र सरकार के अधीन है... इसके अलावा गिलगित और बालटिस्तान का इलाका है... जिन्हें स्वायत्त प्रदेश कहा जाता है... बलूचिस्तान पाकिस्तान का पश्चिमी प्रांत है जिसकी राजधानी क्वेटा है... इसकी सीमा एक ओर ईरान से लगती है.. दूसरी ओर अफगानिस्तान से लगती है.. और तीसरी ओर पाकिस्तान से लगती है...
अब सवाल ये है कि आखिर बलूचिस्तान को लेकर इतना विवाद है क्यों... क्यों पाकिस्तान की सरकार और पाकिस्तानी सेना पर बलूचिस्तान को लेकर बड़े आरोप लगते रहते हैं... और क्यों बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान से आज़ाद होना चाहते हैं... पहले आपको बताते हैं कि पाकिस्तान के लिए बलूचिस्तान इतना अहम क्यों है... दरअसल बलूचिस्तान में यूरेनियम,पेट्रोल,प्राकृतिक गैस,तांबा और कई अन्य धातुओं के भंडार हैं... पाकिस्तान की कुल प्राकृतिक गैस का एक तिहाई यहीं से निकलता है... यही नहीं अरब सागर के किनारे होने की वजह से बलूचिस्तान सामरिक तौर पर भी पाकिस्तान के लिए बेहद अहम है... कतर,ईरान या तुर्कमेनिस्तान से कोई भी गैस या तेल की पाइपलाइन गुजरेगी तो उसे बलूचिस्तान से होकर ही जाना होगा
बलूचिस्तान में पाकिस्तान और चीन का गठबंधन
पाकिस्तान. चीन की मदद से बलूचिस्तान में कई बड़े प्रोजेक्ट्स चला रहा है... जिससे पाकिस्तान और चीन के खज़ाने तो भर रहे हैं.. लेकिन बलूचिस्तान के लोगों को कुछ भी नहीं मिल रहा...
वक्त के साथ बलोच अपने हक के के लिए आवाज़ उठाते रहे... लेकिन पाकिस्तानी सेना हर बार उन्हें अपनी ताकत के दम पर कुचलती आ रही है... हर बीते वक्त के साथ पाकिस्तान में सरकारें बदलती रहीं... अगर कुछ नहीं बदला तो वो था बलूचिस्तान के लिए उसका रवैया... इस बार जब नवाज़ शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने.. तब बलूच लोगों को एक उम्मीद सी जगी.. लेकिन उनकी ये उम्मीद भी झूठी निकली...
11 अगस्त 1947 को ही बलूचिस्तान आज़ाद हुआ... 1948 में पाकिस्तान ने जबरन बलूचिस्तान पर कब्ज़ा किया.. .तब से लेकर आज तक उसने अपने आप को कभी भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं माना... और यही बात पाकिस्तान को नागवार गुज़रती है.. जिसका खामियाज़ा बलूची लोग.. पाकिस्तानी सेना के ज़ुल्मों के ज़रिए भुगतते हैं... पाकिस्तान के इन जुल्मों सितम के खिलाफ आज भी लड़ाई जारी है... और यही वजह है कि बलूचिस्तान पर पाकिस्तान का ज़ुल्म कम होने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है... और इसकी शुरुआत हुई 1948 में जब उसने अपनी सैन्य ताकत के दम पर बलूचिस्तान पर कब्ज़ा किया...
बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना का दमन
उसके बाद 1958, 1962 और 1973 में पाकिस्तान ने बड़ा सैन्य अभियान चलाया.. ताकि विद्रोहियों को दबाया जा सके, 1973 के सैन्य अभियान में पाकिस्तानी सेना के करीब 400 जवानों और करीब 8 हजार बलूच लड़ाकों की मौत हुई, 2004 से अब तक हुए पाकिस्तानी मिलिट्री ऑपरेशनों में बलूचिस्तान के करीब 19,000 लोग मारे जा चुके हैं, पाकिस्तान लगातार लोकतांत्रिक बलूच नेताओं की हत्या और कट्टरपंथियों की आर्थिक मदद करता आ रहा है.. किसी भी बलूच को सेना और सरकारी नौकरियों ने नहीं आने दिया जाता... पाकिस्तान सेना पर बलूच महिलाओं के शोषण के आरोप भी लगातार लगते आ रहे हैं
2005 में बलूचिस्तानी नेताओं नवाब अकबर खां बुग्ती और मीर बालच मर्री ने पाकिस्तान सरकार के सामने 15 सूत्रीय एजेंडा रखा. एजेंडे में बलूच प्रांत के लिए ज्यादा अधिकारों की मांग की गई. लेकिन मांगों के बदले अगस्त 2006 में पाकिस्तानी सेना ने बुग्ती को मार गिराया... बुग्ती पर पाक के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर हमले का आरोप लगाया गया. नतीजा ये हुआ.. कि पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह की चिंगारियां भड़कती रहीं... बलूच विद्रोहियों की मांग है कि पाकिस्तान बलूचिस्तान को स्वतंत्र देश घोषित करे... पाकिस्तानी सेना के अभियानों को रोका जाए... प्राकृतिक गैस और तेल भंडारों से होने वाली कमाई में बलूचिस्तान को हिस्सा दिया जाए... साथ ही कमाई का कुछ हिस्सा इलाके के विकास पर खर्च किया जाए..
बलूचिस्तान में भारत की दखल का आरोप
बलूचिस्तान के विद्रोह में पाकिस्तान भारत का हाथ बताता है... जबकि भारत हमेशा से कहता आ रहा है कि ये पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है... इस पर विवाद 2009 में ज्यादा बढ़ा.. जब इजिप्ट के शर्म अल शेख में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी की मुलाकात हुई... भारत और पाकिस्तान का जो साझा बयान जारी किया गया.. उस पर गिलानी ने कहा था कि इस बयान में पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में भारत की दखअंदाज़ी का ज़िक्र किया है.. जिसके बाद भारत में विवाद पैदा हुआ.. और मनमोहन सिंह को संसद में इस पर सफाई देनी पड़ी..
बलूचिस्तान पर भारत का रूख सिर्फ इतना है कि पाकिस्तान को पहले अपने घर में मचे घमासान को संभालना चाहिए.. ना कि उसे भारत के अभिन्न अंग कश्मीर की चिंता करनी चाहिए...
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