पठानकोट एयरबेस के भीतर आतंकियों का 'अपना' कौन था ?
एयरबेस में किसने की आतंकियों की मदद ?
सवाल सुनकर आप चौक सकते हैं. चौकना वाज़िब भी है लेकिन ये सवाल है बेहद गहरा क्योंकि जिन आर्मी कैंप्स/एयरबेसेज़/नेवल बेसेज़ में घुसना तो छोड़िए पास फटकना तक आम आदमी के लिए मुश्किल होता है, वहां आतंकी ना सिर्फ पहुंचे हैं, ना सिर्फ घुसपैठ की है बल्कि हमारे जवानों को मार भी दिया. ऐसे में ये सवाल उठना लाज़मी है कि कहीं ऐसा तो नहीं की एयरबेस के भीतर आतंकियों की मदद के लिए कोई मौजूद था. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने आज कहा कि आतंकियों ने जिन सामानों का इस्तेमाल किया उनमें से कई पाकिस्तान मेड थे. तो क्या बाकी का सामान मेड इन इंडिया था. अगर ऐसा था तो ज़ाहिर है कोई ना कोई था जिसने आतंकियों के लिए ना सिर्फ उनकी ज़रूरत का सामान मुहैया कराया बल्कि उन्हें एयरबेस के भीतर घुसने में भी मदद की
50 किलो गोली, भारी मात्रा में हैंडग्रेनेड और बाकी सामान लेकर आतंकी कैसे घुसे ?
अब ज़रा आप सोचिए कि भले ही किसी को कितनी भी ट्रेनिंग दी गयी हो. भले ही वो कितना भी भारी वज़न उठा सकता हो लेकिन वो इतनी आसानी से एयरबेस तो छोड़िए किसी रिहायशी इलाके में भी नहीं घुस सकता जहां पर सुरक्षा के इंतज़ाम बिल्कुल नहीं हों. ऐसे में इतना गोला बारूद, एके 47 राइफल, ग्रेनेड लॉन्चर, पचास किलो गोली, 100 से ज्यादा हैंडग्रेनेड और साथ में खाने पीने का सामान लेकर वो एयरबेस जैसी बेहद सुरक्षित जगह पर घुस कैसे गए. ऐसा तभी हो सकता है जब आतंकियों का कोई अपना एयरबेस के भीतर मौजूद हो. बिना विभीषण के तो राम भी लंका में नहीं घुस पाए थे तो ज़ाहिर है आतंकियों का कोई ना कोई मददगार एयरबेस के भीतर था जिसने इतनी बड़ी आतंकी कार्रवाई में मदद की
रक्षा मंत्री ने भी मानी सुरक्षा में है भारी कमी
पठानकोट एयरबेस का दौरा करके रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर जब मीडिया से मुखातिब हुए तो उन्होंने माना की सुरक्षा में गैप्स हैं यानि सुरक्षा कमियां हैं. यहां पर सवाल ये भी है कि अगर रक्षा मंत्री जो की एक सिविलियन हैं उन्हें सिर्फ दौरा करके लग गया कि एयरबेस की सुरक्षा में कमियां हैं तो वहां पर मौजूद सेना के अधिकारियों को ये बात क्यों नहीं समझ में आयी. जिन लोगों के सिर पर एयरबेस की सुरक्षा की ज़िम्मेदारियां हैं क्या उन्हें लूप होल्स नज़र नहीं आए. अगर ऐसा है तो फिर ऐसे नकारा अफसरों को इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कैसे दी गयी. इसकी जांच की जानी चाहिए और अगर ऐसी लापरवाही या चूक पायी जाती है तो उन्हें कोर्ट मार्शल कर देना चाहिए. क्योंकि इनकी वजह से ही हमारे 7 जवान शहीद हो गए. नकारा अधिकारियों की कमी का खामियाज़ा हमारे उन बहादुर सैनिकों को भुगतना पड़ा जो आतंकियों के मंसूबों को नाकाम करने में सबसे आगे थे
क्या गुरदासपुर एसपी उस वक्त पार्टी मनाने गए थे ?
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने पंजाब पुलिस की भूमिका पर बोलने से मना कर दिया लेकिन इससे पंजाब पुलिस की नाकबलियत छुप नहीं सकती. पहला बड़ा सवाल उठता है गुरदासपुर के एसपी सलविंदर सिंह पर. क्या एसपी जैसे स्तर के अधिकारी इतने सक्षम नहीं हैं कि जब वो गश्त पर हों या फिर कहीं जा रहे हों तो उन्हें कोई भी हथियारबंद शख्स रोक ले.. पिटाई करे... मोबाइल छीन ले... ड्राइवर की हत्या कर दे और वो बच जाएं. बात हज़म नहीं होती.. बकौल एसपी आतंकी आर्मी के यूनिफॉर्म में थे. इसीलिए उन्होंने अपनी गाड़ी रोक दी. यहां पर कई सवाल उठते हैं..
सवाल नंबर 1 - अगर एसपी पठानकोट के गांव कठुआ पहुंचे थे, वो भी अपनी निजी गाड़ी पर तो उन्होंने अपने साथ जवानों को साथ लेकर जाना मुनासिब क्यों नहीं समझा वो भी तब जब इंटेलीजेंस इनपुट पहले ही मिल चुका था कि आतंकी पठानकोट में घुस चुके हैं
सवाल नंबर 2 - एसपी जैसा अधिकारी बिना किसी हथियार के उस जगह पर क्यों जाता है जो पाकिस्तान बॉर्डर के बेहद करीब है.
सवाल नंबर 3 - 31 दिसंबर की शाम थी, एसपी साहेब के साथ कुक था और उनका एक दोस्त था. मतलब साफ झलकता है कि वो पार्टी करने गए थे. कहीं ऐसा तो नहीं था कि एसपी साहब नशे में थे
पंजाब पुलिस ने एसपी की चेतावनी को गंभीरता से क्यों नहीं लिया ?
नकारापन की हद तो तब नज़र आती है जब एसपी अपने से बड़े अधिकारियों को आपबीती सुनाता है. पूरी घटना बताता है लेकिन पंजाब पुलिस के वो बड़े अधिकारी उसकी बातों को गंभीरता से लेते ही नहीं हैं. अगर पंजाब पुलिस ने अपने एसपी की बात को मानकर फौरन एक्शन लिया होता तो शायद इतनी बड़ी आतंकी घटना नहीं हो पाती. शायद जिन सात बहादुर जवानों को हमने खो दिया वो आज अपने परिवार के साथ होते ना कि उनकी माला लटकी हुई फोटो.
सवाल सुनकर आप चौक सकते हैं. चौकना वाज़िब भी है लेकिन ये सवाल है बेहद गहरा क्योंकि जिन आर्मी कैंप्स/एयरबेसेज़/नेवल बेसेज़ में घुसना तो छोड़िए पास फटकना तक आम आदमी के लिए मुश्किल होता है, वहां आतंकी ना सिर्फ पहुंचे हैं, ना सिर्फ घुसपैठ की है बल्कि हमारे जवानों को मार भी दिया. ऐसे में ये सवाल उठना लाज़मी है कि कहीं ऐसा तो नहीं की एयरबेस के भीतर आतंकियों की मदद के लिए कोई मौजूद था. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने आज कहा कि आतंकियों ने जिन सामानों का इस्तेमाल किया उनमें से कई पाकिस्तान मेड थे. तो क्या बाकी का सामान मेड इन इंडिया था. अगर ऐसा था तो ज़ाहिर है कोई ना कोई था जिसने आतंकियों के लिए ना सिर्फ उनकी ज़रूरत का सामान मुहैया कराया बल्कि उन्हें एयरबेस के भीतर घुसने में भी मदद की
50 किलो गोली, भारी मात्रा में हैंडग्रेनेड और बाकी सामान लेकर आतंकी कैसे घुसे ?
अब ज़रा आप सोचिए कि भले ही किसी को कितनी भी ट्रेनिंग दी गयी हो. भले ही वो कितना भी भारी वज़न उठा सकता हो लेकिन वो इतनी आसानी से एयरबेस तो छोड़िए किसी रिहायशी इलाके में भी नहीं घुस सकता जहां पर सुरक्षा के इंतज़ाम बिल्कुल नहीं हों. ऐसे में इतना गोला बारूद, एके 47 राइफल, ग्रेनेड लॉन्चर, पचास किलो गोली, 100 से ज्यादा हैंडग्रेनेड और साथ में खाने पीने का सामान लेकर वो एयरबेस जैसी बेहद सुरक्षित जगह पर घुस कैसे गए. ऐसा तभी हो सकता है जब आतंकियों का कोई अपना एयरबेस के भीतर मौजूद हो. बिना विभीषण के तो राम भी लंका में नहीं घुस पाए थे तो ज़ाहिर है आतंकियों का कोई ना कोई मददगार एयरबेस के भीतर था जिसने इतनी बड़ी आतंकी कार्रवाई में मदद की
रक्षा मंत्री ने भी मानी सुरक्षा में है भारी कमी
पठानकोट एयरबेस का दौरा करके रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर जब मीडिया से मुखातिब हुए तो उन्होंने माना की सुरक्षा में गैप्स हैं यानि सुरक्षा कमियां हैं. यहां पर सवाल ये भी है कि अगर रक्षा मंत्री जो की एक सिविलियन हैं उन्हें सिर्फ दौरा करके लग गया कि एयरबेस की सुरक्षा में कमियां हैं तो वहां पर मौजूद सेना के अधिकारियों को ये बात क्यों नहीं समझ में आयी. जिन लोगों के सिर पर एयरबेस की सुरक्षा की ज़िम्मेदारियां हैं क्या उन्हें लूप होल्स नज़र नहीं आए. अगर ऐसा है तो फिर ऐसे नकारा अफसरों को इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कैसे दी गयी. इसकी जांच की जानी चाहिए और अगर ऐसी लापरवाही या चूक पायी जाती है तो उन्हें कोर्ट मार्शल कर देना चाहिए. क्योंकि इनकी वजह से ही हमारे 7 जवान शहीद हो गए. नकारा अधिकारियों की कमी का खामियाज़ा हमारे उन बहादुर सैनिकों को भुगतना पड़ा जो आतंकियों के मंसूबों को नाकाम करने में सबसे आगे थे
क्या गुरदासपुर एसपी उस वक्त पार्टी मनाने गए थे ?
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने पंजाब पुलिस की भूमिका पर बोलने से मना कर दिया लेकिन इससे पंजाब पुलिस की नाकबलियत छुप नहीं सकती. पहला बड़ा सवाल उठता है गुरदासपुर के एसपी सलविंदर सिंह पर. क्या एसपी जैसे स्तर के अधिकारी इतने सक्षम नहीं हैं कि जब वो गश्त पर हों या फिर कहीं जा रहे हों तो उन्हें कोई भी हथियारबंद शख्स रोक ले.. पिटाई करे... मोबाइल छीन ले... ड्राइवर की हत्या कर दे और वो बच जाएं. बात हज़म नहीं होती.. बकौल एसपी आतंकी आर्मी के यूनिफॉर्म में थे. इसीलिए उन्होंने अपनी गाड़ी रोक दी. यहां पर कई सवाल उठते हैं..
सवाल नंबर 1 - अगर एसपी पठानकोट के गांव कठुआ पहुंचे थे, वो भी अपनी निजी गाड़ी पर तो उन्होंने अपने साथ जवानों को साथ लेकर जाना मुनासिब क्यों नहीं समझा वो भी तब जब इंटेलीजेंस इनपुट पहले ही मिल चुका था कि आतंकी पठानकोट में घुस चुके हैं
सवाल नंबर 2 - एसपी जैसा अधिकारी बिना किसी हथियार के उस जगह पर क्यों जाता है जो पाकिस्तान बॉर्डर के बेहद करीब है.
सवाल नंबर 3 - 31 दिसंबर की शाम थी, एसपी साहेब के साथ कुक था और उनका एक दोस्त था. मतलब साफ झलकता है कि वो पार्टी करने गए थे. कहीं ऐसा तो नहीं था कि एसपी साहब नशे में थे
पंजाब पुलिस ने एसपी की चेतावनी को गंभीरता से क्यों नहीं लिया ?
नकारापन की हद तो तब नज़र आती है जब एसपी अपने से बड़े अधिकारियों को आपबीती सुनाता है. पूरी घटना बताता है लेकिन पंजाब पुलिस के वो बड़े अधिकारी उसकी बातों को गंभीरता से लेते ही नहीं हैं. अगर पंजाब पुलिस ने अपने एसपी की बात को मानकर फौरन एक्शन लिया होता तो शायद इतनी बड़ी आतंकी घटना नहीं हो पाती. शायद जिन सात बहादुर जवानों को हमने खो दिया वो आज अपने परिवार के साथ होते ना कि उनकी माला लटकी हुई फोटो.
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