तमिलनाडु में अम्मा रिटर्न्स
तमिलनाडु में अम्मा ने सत्ता पर दोबारा कब्ज़ा कर रिकॉर्ड बना दिया है... पिछले 27 साल में ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई पार्टी सत्ता में लौटी है... जयललिता ने डीएमके और कांग्रेस के गंठबंधन को ध्वस्त कर रिकॉर्ड बना दिया है... तमाम अटकलों को दरकिनार करते हुए जयललिता ने आखिरकार वो कर दिखाया जिसके होने की उम्मीद कम लग रही थी... लगातार दूसरी बार जयललिता ने चुनाव जीतकर इतिहास को बदल दिया है...अब सवाल ये है कि आखिर अम्मा ने ये करिश्मा किया कैसे... कैसे उन्होंने तमिलनाडु के इतिहास में वो कर दिखाया जो पिछले 27 साल में नहीं हुआ था... दरअसल इसकी कई वजहें हैं...
अम्मा की जीत की पहली बड़ी वजह
रोज़गार, शिक्षा और महिला सुरक्षा पर ज़ोर
जयललिता ने कहा था कि अगर वो सत्ता में आयी तो डीएमके की तरह मिक्सर या ग्राइंडर नहीं बल्कि लैपटॉप बांटेंगी.. शहरों को आईटी सिटी बनाएंगी.. महिलाओं की सुरक्षा पर खास ध्यान देंगी.. जिस पर मतदाताओँ ने पूरा भरोसा किया..
अम्मा की जीत की दूसरी बड़ी वजह
भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाना
भ्रष्टाचार के छींटें तो जयललिता के दामन पर भी लगें हैं..
लेकिन 2जी केस से लेकर चुनाव में पैसों के इस्तेमाल के मुद्दे को उन्होंने जमकर
भुनाया... लोगों ने वादाय किया कि अगर वो सत्ता में दोबारा लौंटी तो करप्शऩ को
पूरी तरह से खत्म कर देंगी.. और इसका भी बड़ा असर वोटर्स पर हुआ..
अम्मा की जीत की तीसरी बड़ी वजह
डीएमके की पारिवारिक कलह
जयललिता की जीत की एक बड़ी वजह डीएमके की पारिवारिक कलह भी रही.... सुप्रीमों करुणानिधि का स्वास्थ्य ठीक नहीं था... स्टालिन को उन्होने अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर दिया... बड़े बेटे अलागिरी ... की स्टालिन से नहीं पट रही... कनिमोझी.. दयानिधि मारन... और कलानिधि मारन ने अलग मोर्चा खोला हुआ था... मतदाताओं को लगा कि अगर डीएमके सत्ता में आयी तो सत्ता में पावर की लिए परिवार में ही जंग छिड़ जाएगी.. ऐसे में राज्य हाशिए पर चला जाएगा.. और यही बात मतदाताओं को नागवार गुज़री...
अम्मा की जीत की चौथी बड़ी वजह
अम्मा ने जनता से नज़दीकीयां बढ़ाईं
चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से दूर रहने वाली जया लोगों के पास गयीं... बात की.. दुख दर्द जाना... इससे लोगों को एक मैसेज देने में वो कामयाब हुईं... कि वो अब लोगों के करीब आना चाहती हैं... लोगो को एक बदली हुई अम्मा नज़र आयीं और यही बात जनता को बेहद पसंद आयी़
1996 में जयललिता की पार्टी चुनावों में हार गयी... खुद भी चुनाव
हारीं... करप्शन और सरकार विरोधी जनभावना ने उनकी लुटिया डूबो दी... हालांकि पांच
साल बाद ही 2001 में एक बार वो फिर से सीएम की कुर्सी पर काबिज़ हुईं... यही नहीं करप्शन के मामलों और कोर्ट से सजा
मिलने के बावजूद उन्होंने अपनी पार्टी को चुनावों में जीत दिलवायी...
जयललिता ने गैर निर्वाचित मुख्यमंत्री के तौर पर कुर्सी तो
संभाल ली लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नियुक्ति को रद्द कर दिया... जिसके बाद
उन्हें अपनी कुर्सी पनीरसेल्वम को देनी पड़ी.. हालांकि पनीरसेल्वम सिर्फ नाम के
मुख्यमंत्री थे क्योंकि कुर्सी पर तो जयललिता का खड़ाउं (कृपया इसे सैंडिल समझा
जाए) ही विराजमान था... हालांकि जब उन्हें मद्रास हाईकोर्ट से थोड़ी राहत मिली तो
मार्च 2002 में अपने खड़ाउं (यहां पर भावना पनीरसेल्वम से है) को हटाकर कुर्सी पर
काबिज़ हो गयीं...
यानि कुल मिलाकर तो यही कहा जा सकता है कि विपरीत हालातों में भी अम्मा अपने रथ से डिगीं नहीं... ऐसे में उन्हें आयरन लेडी भी कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी...
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