अभी अभी

सड़क पर वो मार खाता रहा, बच्चे लोगों से पिता को बचाने की गुहार लगाते रहे, शर्म है दिल्लीवालों


दिल्ली वाले ना सिर्फ गालियां देने में बेशर्म हैं.. बल्कि वो किसी की जान बचाने में भी बेशर्म हैं... अरे कोई सड़क पर लड़ रहा है तो मेरी बला से... नौबत हाथापाई तक पहुंच गयी है मेरी बला से.. मैं तो खड़ा होकर सिर्फ तमाशा देखूंगा... हाथापाई अब जानलेवा बन चुकी है.. अरे तो मैं क्या करूं... मुझे तो बड़ा मज़ा आ रहा है... भाई क्या सही लड़ाई चल रही है यहां पर... मरेगा पक्का. .दोनों में से कोई ना कोई तो मरेगा... अबे तो मैं क्या करूं.. किसी और के फटे में क्यों टांग अड़ाउं... ना भाई ना... अपने को तो भाई ऐसे लफड़े से दूर ही रहना है... और इन्हीं विचारों के साथ करीब 60-70 लोग जो काफी देर से घेरा बनाए... भीड़ बनकर.. रोड़ पर हो रही लड़ाई देख रहे थे.. नामर्दों की तरह... वो घेरा तोड़कर निकल गए... थोड़ी देर बाद टीवी देखते हुए... एक भाई साहब अपनी पत्नी को बता रहे थे...अरे देख-देख यहीं पर था मैं... साला क्या कुत्तों की तरह लड़ रहे थे लोग... कोई बचाने नहीं आया बेचारे को... अब अकेला मैं क्यों जाता मरने.... साला इतने लोग थे वहां पर कोई ना कोई तो आ ही जाता.. लेकिन सब साले फट्टू निकले... हां भई.. कौन जाए... अपनी जान तो नहीं जा रही थी ना...

और इस तरह से दिल्ली में कुछ लोगों ने मामूली सी सड़क लड़ाई को जानलेवा जंग में बदलते देखा... कुछ लोगों ने बच्चों के सामने उसके पिता को मरते देखा... और फिर भीड़ का घेरा यूं निकल गया जैसे सब ज़िंदा लाशें खड़ीं थी वहां पर... शर्म है दिल्ली वालों... 

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