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अमौसा का मेला

स्वर्गीय कवि कैलाश गौतम की ये रचना वैसे है तो भोजपुरी भाषियों के लिए... लेकिन मुझे लगता है कि थोड़ी मशक्कत के बाद हिंदीभाषी भी इसके मर्म को समझ सकते हैं... पहली बार जब ये कविता पढ़ी तो ऐसा लगा कि जैसे गांव की पूरी ज़िंदगी शब्दों में रच कर सामने रख दी गयी है... ज़रूर पढ़ें और ना समझ में आए तो बेहिचक सवाल भी पूछें....


कि भक्ति के रंग मे रंगल गाव देखs
धरम मे करम मे सनल गाव देखs
अगल मे बगल मे सगल गाव देखs
अमौसा नहाये चलल गाव देखs

एहु हाथे झोरा ओहु हाथे झोरा 
आ कान्ही पे बोरा कपारे पे बोरा 
आ कमरी पे केहु रजाई मे केहु 
अ कथरी मे केहु दुलाई मे केहु 
कि आज रंगावत हई गोड देखs
हसत हउये बब्बा तनी जोड देखs 
घुंघटवे से पुछे पतोहिया कि अईया 
गठरईया मे अब का रखाई बतईहा 
एहर हउवे लुगा ओहर हउवे पुडी 
रामायन के लगे ह मडुवा के ढुंढी 
उ चाउर चिउरा किनारे के ओरी 
आ नवका चपलवा अंचारे के ओरी 

अमौसा का मेला अमौसा का मेला ........ 

मचल हउवे हल्ला चढावs उतारs 
खचाखच भरल रेलगाडी निहारs 
एहर गुर्री गुर्रा ओहर लुली - लुला 
आ बिच्चे मे हउवे शराफत से बोलs 
चपाईल ह केहु दबाईल ह केहु
आ घंटन से उपर टंगाईल ह केहु
केहु हक्का बक्का केहु लाल पियर
केहु फनफनात हउवे कीरा के नीयर 
अ बप्पा रे बप्पा आ दईया रे दईया 
तनी हम्मे आगे बढे द त भईया 
मगर केहु दर से टसकले ना टसके 
टसकले ना टसके , मसकले ना मसके 
छिडल हौ हिताई नताई के चरचा
पढाई लिखाई कमाई के चरचा 
दरोगा के बदली करावत ह केहु 
आ लग्गी से पानी पियावत ह केहु 

अमौसा के मेला अमौसा के मेला ...... 

जेहर देख ओहरै बढत हउवे मेला 
आ सरगे के सीढी चढत हउवे मेला 
बडी हउवे सांसत ना कहले कहाला 
मुडेमुड सगरे ना गिनले गिनाला 
एहि भीड मे संत गिरह्स्त देखा 
सभे अपने अपने मे हौ व्यस्त देखा 
आ टाई मे केहु आ टोपी मे केहु 
आ झुंसी मे केहु , आलोपी मे केहु 
अखाडन मे संगत आ रंगत ई देखs 
बिछौल हउ हजारन के पंगत ई देखs 
कही रासलीला कही परबचन हउ 
कही गोष्ठी हउ कही पे भजन हउ 
केहु बुढिया माई के कोरा उठावे 
अ तिरबेनी मईया मे गोता लगावे 
कलपबास मे घर के चिन्ता लगल हउ 
कटल धान खरिहाने वईसे परल हउ 

अमौसा के मेला , अमौसा के मेला ...... 

गुलब्बन के दुलहिन चले धीरे धीरे
भरल नाव जईसे नदी तीरे तीरे
सजल देहि जईसे हो गवने की डोली
हंसौ हौ बताशा शहद हउवे बोली 
अ देखवली हा ठोकर बचवली हा धक्का 
मनै मन छुहारा मनै मन मुनाक्का 
फुटेहरा नियर मुस्किया मुस्किया के
निहारे ले मेला सिहा के चिहा के
सबै देवी देवता मनावत चलेली
आ नरियर पे नरियर चढावत चलेली 
किनारे से देखे इशारे से बोले 
कही गाँठ जोडे कही गाँठ खोले 
बडे मन से मन्दिर मे दरशन करईली 
आ दुधे से शिवजी के अरघा भरईली 
चढावे चढावा आ गोंठे शिवाला 
छुवल चाहे पिंडी लटक नाही जाला 

अमौसा के मेला अमौसा के मेला ....... 

एहि मे चम्पा चमेली भेटईली 
आ बचपन के दुनो सहेली भेटईली 
ई आपन सुनावे उ आपन सुनावे 
दुनो आपन गहना गदेला गिनावे
असो का बनवलु असो का गढवलु
तु जीजा के फोटो ना अब तक पठवलु
ना ई उन्हे रोके ना उ इन्हे टोके
दुनो अपने दुल्हा के तारीफ झोंके 
हमे अपनी सासु के पुतरी तु जन्हिया
आ हम्मे ससुर जी के पगरी तु जन्हिया 
शहरियो मे पक्की देहतियो मे पक्की 
चलत हउवे टेम्पु चलत हउवे चक्की 
मनेमन जरै आ गडे लगली दुनो 
भईल तु तु मै मै लडे लगली दुनो 
आ साधु छोडावे सिपाही छोडावे 
आ हलवाई जईसे कराही छोडावे 

अमौसा के मेला अमौसा के मेला ...... 

कलौता के माई के झोरा हेराईल
आ बुद्धु के बडका कटोरा हेराईल
टिकुलिया के माई टिकुलिया के जोहे
बिजुलिया के माई बिजुलिया के जोहे
मचल हउवे मेला मे सगरे ढुन्ढाई
चमेला के बाबु चमेला के माई
गुलबिया सभतर निहारत चलेलै
मुरहुवा मुरहुवा पुकारत चलेलै
आ छोटकी बिटियवा के मारत चलेलै 
बिटियवा पे गुस्सा उतारत चलेलै 

गोबरधन के सरहज किनारे भेटईली 
गोबरधन के संगे पँउड के नहईली 
घरे चलतs पाहुन दही गुड खियवती
भतीजा भईल हउ भतीजा देखवती 
उहे फेंक गठरी परईले गोबरधन 
ना फेर फेर देखईले धरईले गोबरधन 

अमौसा के मेला अमौसा के मेला ......... 

केहु शाल सुईटर दुशाला मोलावे
केहु बस अटैची की ताला मोलावे
केहु चायदानी पियाला मोलावे
सोठउरा के केहु मसाला मोलावे 
नुमाईस मे जाते बदल गईली भउजी 
आ भईया से आगे निकल गईली भउजी 
आईल हिंडोला मचल गईले भउजी 
आ देखते डरामा उछल गईली भउजी 
आ भईया बेचारु जोडत हवे खरचा 
भुलईले ना भुली पकौडी के मरिचा 
बिहाने कचहरी कचहरी के चिन्ता
बहिनिया के गहना मसहरी के चिन्ता
फटल हउवे कुर्ता फटल हउवे जुता
खलित्ता मे खाली किराये के बुता
तबौ पिछे पिछे चलत जात हउवन
गदेरी मे सुरती मलत जात हउवन 

अमौसा के मेला अमौसा के मेला ...

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