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नॉन रेज़ीडेंट बिहारी [NRB]


[हमारे पुराने मित्र और बिहारी भाई शशिकांत मिश्रा ने एक किताब लिख डाली है. पेशे से पत्रकार हैं लेकिन किताब किसी मंझे हुए कहानीकार/उपन्यासकार की भांति लिखा है. कमी की कोई गुंजाइश कहीं नज़र नहीं आती]

शशिकांत मिश्रा भाई माफ कीजिएगा की किताब एक बैठकी में नहीं दो बैठकी में पढ़ पाया.. लेकिन यकीन मानिए लगा नहीं की एक बार में नहीं पढ़ा है. खैर सीधे मुद्दे पर आते हैं. कोई माई का लाल नहीं कह सकता कि ये आपका पहला उपन्यास है. जैसे-जैसे पन्ने आगे बढ़ते गए.. कहानी के किरदार हवा में तैरने लगे... किताब के बाहर निकल कर संजय, राहुल, शालू, श्याम भैया सब एक चेहरा अख्तियार करने लगे. ऐसा लगा कि यार ये तो अपने कई दोस्तों की अपनी कहानी है जिन्हें मैं बेहद करीब से जानता हूं. हो सकता है ऐसा बिहारी होने की वजह से लग रहा हो. क्योंकि हर दूसरा बिहार आईएएस या आईपीएस बनने का ही सपना ढोता रहता है जबतक उसका चांस खत्म ना हो जाए. कहानी का क्लाइमैक्स बिल्कुल किसी बॉलीवुड की कहानी की तरह बेहद तेज़ गति से भागता हुआ पूरा हुआ. पूरी कहानी ने कहीं भी सांस लेने का मौका दिया. कहीं से भी नहीं लगा कि यार ये चार लाइनें फालतू की लिखी हैं या फिर ये वाला वाक्या ज़बरदस्ती शशि भाई ने घुसा दिया है. मेरा तो मानना है कि भइया इतने पर आपकी लेखनी रुकने नहीं वाली है. तो भाइयों जल्दी से खरीदीए नॉन रेज़ीडेंट बिहारी और मज़ा लीजिए एक शानदार कहानी का. अगर आप बिहारी नहीं भी हैं तो भी कोई बात नहीं कहानी का मज़ा आपको उतना ही मिलेगा जितना की किसी बिहारी को

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