अभी अभी

नियति


शर्मा जी... शाम को जब घर वापसी के लिए निकलें तो ज़रा मुझे फोन कर लीजिएगा बाज़ार से दो-चार चीज़ें मंगानी हैं... संजना ने अपने पति को उलाहने वाले अंदाज़ में कहा...

जी.. मैडम ज़रूर... लेकिन एक बात बताइए... आज आपका अंदाज़ कुछ बदला-बदला सा क्यों है.. और ताना तो ऐसा मार रही हैं आप... जैसे इससे पहले आपकी कोई बात मानी ही नहीं गयी है...

नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है... हर बार तो आपका कोई आदमी घर के सारे काम कर जाता है... लिस्ट आपको भेजती हूं.. सामान कोई और लेकर आता है... लेकिन आज ऐसा नहीं है...आज तो आपको खुद बाज़ार जाकर मेरी कही चीज़ लेकर आनी होगी... क्योंकि मैं नहीं चाहती की पिछली बार की तरह जब आपकी बहनों को मैं गिफ्ट दूं तो आप नाक भौं सिकोड़ों की क्या दे दिया...

हां..हां.. ठीक है... टाइम मिला तो पक्का लेकर आऊंगा... इतना कहकर कमल ने बैग उठाया और ऑफिस के लिए निकल पड़ा...

घर से उसका ऑफिस करीब 10 किलोमीटर दूर था... फोन पर कुछ देखते-देखते अचानक उसकी नज़र साथ में चल रही एक कार पर पड़ी.. उसमें एक बड़ा प्यारा सा बच्चा जीभ निकाल कर उसे चिढ़ाता हुआ दिख गया...

कमल को हंसी आयी.. क्योंकि बचपन में वो भी इतना ही शरारती था... जब भी अपने पापा के साथ वो कहीं जाता..रास्ते पर ऐसी ही हरकतें करता जाता... अपना बचपना याद आते ही होठों पर उसकी एक हल्की सी हंसी आ गयी...

लेकिन शायद ये जेनरेशन का फर्क था.. तभी तो शीशे से झांकता वो बच्चा सिर्फ जीभ चिढ़ाने से ही नहीं रूका... कभी कानों पर हाथ लगाकर चिढ़ाता... कभी गोल-गोल आंखे घुमाकर चिढ़ाता... रास्ते भर वो कमल को चिढ़ाता रहा... बच्चा दिखने में बहुत प्यारा था... कमल और संजना भी अब बच्चा प्लान कर रहे थे.. इसलिए कमल को इस बच्चे में अपना बच्चा नज़र आने लगा... एक ओर कमल उसके चेहरे में अपने बच्चे की सूरत ढूंढ रहा था.. और दूसरी ओर बच्चा अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहा था... चिढ़ाने का सिलसिला जारी था...

कई बार कमल को गुस्सा भी आया कि यार कैसा बच्चा है... क्योंकि जब वो ऐसा करता था तो पापा फौरन डांट देते थे... वो कहते थे कि लोगों को लगना चाहिए कि तुम शरीफों के घर के बच्चे हो... लेकिन कार में बैठे इसके मां-बाप.. हां मां-बाप ही लग रहे हैं... वो इसे ना तो डांट रहे हैं.. और ना ही रोक रहे हैं...

खैर कमल ने अपना ध्यान बच्चे से हटा दिया... क्योंकि वो अपने ऑफिस बस पहुंचने ही वाला था...कार से उतर कर जैसे ही ऑफिस पहुंचा.. तो उसने देखा की दर्जनों लोग उसका इंतज़ार कर रहे थे...

नमस्ते डॉक्टर साहब... प्रणाम डॉक्टर साहब... ना जाने कितने लोगों ने उसे देखकर अभिवादन किया... नर्स फौरन भागती हुई आयी और बोला की सर आज तो क्लिनिक पर बहुत भीड़ है... कमल को एक बार अपने-आप पर फक्र हुआ... आखिर वो शहर का ही क्या...पूरे राज्य का टॉप का कैंसर एक्सपर्ट था... लेकिन फक्र की सिर्फ यही वजह नहीं थी... फक्र इसलिए भी था क्योंकि विदेश की ऐशो आराम की नौकरी छोड़कर उसने अपने शहर में प्रैक्टिस करने का फैसला किया था... अपने पिता की कैंसर से मौत के बाद उसने प्रण लिया था.. कि अब किसी के साथ ऐसा नहीं होने देगा...

सिस्टर... कितने पेशेंट हैं... सर अभी तक तो 37 हैं... एक और पेशेंट अभी थोड़ी देर पहले आया है... लेकिन उसके घरवाले पहले दिखाने की ज़िद कर रहे हैं...

अरे ये क्या बात हुई. और जो लोग सुबह से यहां आकर बैठे हैं... क्या वो ज़रूरतमंद नहीं हैं...

सर.. दरअसल पेशेंट 5 साल का एक बच्चा है... ब्लड कैंसर है उसे... बड़ा प्यारा बच्चा है सर.. पता नहीं भगवान ऐसी नाइंसाफी क्यों कर देता है...

5 साल का बच्चा... ओह हो... चलो ठीक है... उसे ही पहले भेज दो.. देखूं क्या किया जा सकता है...

कमल अंदर जाकर कुर्सी पर बैठा ही था कि दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी... और दरवाज़े से झांकता जो चेहरा था... उसे देखते ही कमल को गहरा धक्का लगा...


सामने वही बच्चा था.. जो उसे रास्ते भर चिढ़ाता हुआ जा रहा था.... 

©Alok Ranjan

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